AP State Board Syllabus AP SSC 10th Class Hindi Textbook Solutions Chapter 5 लोकगीत Textbook Questions and Answers.

AP State Syllabus SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 5 लोकगीत

10th Class Hindi Chapter 5 लोकगीत Textbook Questions and Answers

InText Questions (Textbook Page No. 23)

प्रश्न 1.
हाथों में क्या रचनेवाली है?
उत्तर:
हाथों में मेहंदी रचनेवाली है।

प्रश्न 2.
इस तरह के गीतों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
इस तरह के गीतों को लोकगीत कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
किन – किन संदर्भो में लोकगीत गाये जाते हैं?
उत्तर:
त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये लोकगीत गाये जाते हैं।

InText Questions (Textbook Page No. 24)

प्रश्न 1.
लोकगीत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हमारी संस्कृति में लोकगीत विशिष्ट स्थान रखते हैं। मनोरंजन की दुनिया में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। देहाती क्षेत्रों में ये अधिक गाये जाते हैं। लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। ये घर, गाँव, और नगर की जनता के गीत हैं। ये त्यौहारों और विशेष अवसरों पर गाये जाते हैं। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती । इनके रचनेवाले गाँव के आम पुरुष व महिलाएँ होती हैं। लोकगीत की भाषा जनभाषा है। इन्हें साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाया जाता है।

प्रश्न 2.
लोकगीत और संगीत का क्या संबंध है?
उत्तर:
लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती, जब कि शास्त्रीय संगीत में अधिक साधना की जरूरत होती है। संगीत की भाषा साहित्यक होती है जब कि लोकगीत की भाषा जन भाषा है। लोकगीत बाजों की मदद के बिना ही ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं।

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प्रश्न 3.
‘पहाड़ी’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पहाडी क्षेत्रों में रहनेवाली पिछडी जातियों को ‘पहाडी’ कहा जाता है। पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं। उनके अपने – अपने भिन्न रूप होते हुए भी अशास्त्रीय होने के कारण उनमें अपनी एक समान भूमि है। गढ़वाला, किन्नौर, काँगडा आदि पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं। इन्हें गाने की अपनी – अपनी विधियाँ हैं। उनका अलग नाम ही “पहाडी” कहा जाता है।

InText Questions (Textbook Page No. 25)

प्रश्न 4.
वास्तविक लोकगीत कैसे होते हैं?
उत्तर:
वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं। इनका संबंध देहाती की जनता से है। इनमें बडी जान होती हैं। ये गीत अधिकतर दैनिक जीवन की घटनाओं पर आधारित होते हैं। ये ग्रामीण बोलियों में गाये जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। माहिया, हीर – रांझा, सोहनी महीवाल संबंधी गीत पंजाब के हैं। ढोलामारु आदि राजस्थान के हैं। ये सब लोकगीत बड़े चाव से गाये जाते हैं।

प्रश्न 5.
बारहमासा लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बारहमासा लोकगीत तो बारह मासों से संबंधित हैं। इन लोकगीतों में बारह मासों से संबंधित प्रकृति वर्णन के बारे में गीत गाये जाते हैं। जिनमें प्राकृतिक विशेषताओं और महत्व का वर्णन किया जाता है।

प्रश्न 6.
“बिदेसिया’ लोकगीत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भोजपुरी में करीब तीस – चालीस बरसों बिदेसिया का प्रचार हुआ है। गानेवालों में अनेक समूह इन्हें गाते हुए देहात में फिरते हैं। बिहार में बिदेसिया से बढ़कर दूसरे गाने लोकप्रिय नहीं है। इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती हैं। परदेशी प्रेमी की और इनसे करुणा और विरह का रस बरसता है।

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प्रश्न 7.
स्त्रियों के लोकगीत कैसे होते हैं?
उत्तर:
भारत में स्त्रियों के लोकगीत अनंत संख्या में होते हैं। इनका संबंध स्त्रियों से है। इन्हें अधिकतर स्त्रियाँ ही लिखती और गाती हैं। ये गीत ढोलक की मदद से गाती हैं। गाने के साथ नाच का भी पुट होता है।

प्रश्न 8.
लोकगीत किसके प्रतीक हैं?
उत्तर:
लोकगीत हमारी संस्कृति तथा सभ्यता के प्रतीक हैं। आनंद और उल्लास के प्रतीक हैं। लोकगीत उद्दाम जीवन के ही गाँवों के अनंत संख्यक गाने के प्रतीक हैं। ये त्यौहारों के भी प्रतीक हैं। समस्त मानव जीवन के प्रतीक हैं।

अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया

अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1.
लोकगीत ग्रामीण जनता का मनोरंजक साधन है। कैसे?
(या)
ग्रामीण जनता के मनोरंजन का साधन लोकगीत है। इस पर अपने विचार बताइए।
उत्तर:
शीर्षक का नाम : “लोकगीत”
निबन्धकार का नाम : “श्री भगवतशरण उपाध्याय” है

  • लोकगीत लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। ये जनता के संगीत है।
  • ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं।
  • इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती।
  • इनकी रचना करनेवाले भी ज़्यादातर गाँव के लोग हैं।
  • स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है।
  • लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं।
  • इनका सम्बन्ध देहात की जनता से है।
  • इनकी रचना करनेवाले अपने गीतों के विषय रोज़मर्रा के जीवन से लेते हैं।
  • लोकगीतों की भाषा गाँवों और इलाकों की बोलियों से संबंधित है।
  • ये ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी की मदद से गाये जाते हैं।
  • ये लोकगीत कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्रसिद्ध हैं।
  • इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि ग्रामीण जनता के मनोरंजन का साधन लोकगीत है।

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प्रश्न 2.
हिंदी या अपनी मातृभाषा का कोई लोकगीत सुनाइए।
उत्तर:
मेरी मात्रु भाषा तेलुगु होने के कारण मैं तेलुगु का लोकगीत लिख रहा हूँ।

“కోడలా కోడలా కొడుకు పెళ్ళామా
పచ్చిపాల మీద మీగడలేవి ?
వేడిపాల మీద వెన్నల్లు యేవి ?
నూనె ముంతల మీద నురగల్లు యేవి ?”
“అత్తరో ఓయత్త ఆరళ్ళు అత్త
పచ్చిపాల మీద మీగడుంటుందా ?
వేడిపాల మీద వెన్నలుంటాయా ?
నూనె ముంతల మీద నురగల్లు ఉంటాయా?”
ఇరుగు పొరుగులారా ఓ చెలియలార
అత్తగారి ఆరళ్ళు చిత్తగించరా ?
పెత్తనం లాగేస్తే పేచీలు పోను
ఆరళ్ళ అతయిన సవతి పోరయిన
తల్లిల్లు దూరమైన భరియించలేము.”
కోడలా కోడలా కొడుకు పెళ్ళామా |
కోడుకు ఊళ్ళో లేడు మల్లిరిక్కడివి?
“గంపంత మట్చేసి గాలి విసిరింది. ఈ
కొల్లలుగ మల్లెలు కొప్పులో రాలి.

आ) वाक्य उचित क्रम में लिखिए।

1. लोकगीत हैं संगीत सीधे जनता के।
2. वास्तव में प्रकार हैं अनंत के गीतों के गाँव।
3. मदद ढोलक की से स्त्रियाँ हैं गाती।
उत्तर:
1. लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं।
2. गाँव के गीतों के वास्तव में अनंत प्रकार हैं।
3. स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं।

इ) दिया गया गद्यांश पढ़िए और इसके मुख्य शब्द पहचानकर लिखिए।

गाँव के गीतों के वास्तव में अनंत प्रकार हैं। जीवन जहाँ इठला – इठलाकर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्त्रोतों की कमी हो सकती है? उददाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने के प्रतीक हैं।

जैसे : गीत
…………………..
…………………..
उत्तर:
जीवन, इठला – इठलाकर लहराना, अनंत प्रकार, आनंद के स्रोत, उद्दाम जीवन, अनंत संख्यक आदि।

ई) नीचे दिया गया लोकगीत पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजड़े वाली मुनिया।
उड़ – उड़ बैठी हलवैया दुकनिया
बर्फी के सब रस ले लिया रे पिंजड़े वाली मुनिया।
उड़ – उड़ बैठी बजजया दुकनिया
कपडा के सब रस ले लिया रे पिंजड़े वाली मुनिया।
उड़ – उड़ बैठी पनवडिया दुकनिया
बीड़ा के सब रस ले लिया रे पिंजड़े वाली मुनिया। (- शैलेंद्र कुमार)

प्रश्न 1.
चिड़िया (मुनिया) हलवे की दुकान पर किसका रस लेती है?
उत्तर:
चिड़िया (मुनिया) हलवे की दुकान पर बर्फी के रस लेती है।

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प्रश्न 2.
चिड़िया (मुनिया) हलवे की दुकान के बाद किस दुकान पर जाती है?
उत्तर:
चिड़िया (मुनिया) हलवे की दुकान के बाद कपडे की दुकान पर जाती है।

प्रश्न 3.
चिड़िया (मुनिया) पान की दुकान पर किसका रस लेती है?
उत्तर:
चिड़िया (मुनिया) पान की दुकान पर बीड़ा का रस लेती है।

प्रश्न 4.
इस गीत का मूल भाव क्या है?
उत्तर:
इस गीत का मूल भाव यह है कि पिंजड़े में बंदी चिड़िया स्वेच्छा सुख का मज़ा ले रही है। आनंद के साथ उड रही है।

अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता

अ) इन प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
निबंध में लोकगीतों के किन पक्षों की चर्चा की गयी है? इसके मुख्यांश बिंदुओं के रूप में लिखिए।
उत्तर:
यह प्रश्न ‘लोकगीत निबंध पाठ से दिया गया है। इसके लेखक श्री भगवत शरण उपाध्याय हैं। हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है। मनोरंजन की दुनिया में लोकगीत का महत्वपूर्ण स्थान है।

  • लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती।
  • विविध बोलियों पर लोकगीत गाए जाते हैं। गीतों का विषय रोजमर्रा के जीवन से लिया जाता है।
  • अधिकतर संख्या में लोकगीत औरतें ही गाती हैं। ये मार्मिक होते हैं।
  • लोकगीत, शुभ अवसरों पर, मनोरंजन के उद्देश्य से रस्मों को पूर्ति करने हेतु गाये जाते हैं।
  • आल्हा, बारह मासा आदि लोकगीत अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।

इस निबंध में विभिन्न गीतों के प्रकार, गाये जानेवाले क्षेत्र, बोलियाँ, विषय आदि पक्षों की चर्चा की गई है।

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प्रश्न 2.
जैसे – जैसे शहर फैल रहे हैं और गाँव सिकुड़ रहे हैं, लोकगीतों पर उनका क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर:
यह प्रश्न ‘लोकगीत’ निबंध पाठ से दिया गया है। इसके लेखक श्री भगवत शरण उपाध्याय हैं। नगरीकरण के कारण शहर फैल रहे हैं और गाँव सिकुड रहे हैं इसका प्रभाव लोकगीतों पर पड़ रहा है। गाँवों की अपेक्षा शहरों में मनोरंजन के विभिन्न साधनों के होने के कारण उनका ध्यान इस ओर से हट रहा है। पाश्चात्य संगीत से लोग उसकी ओर आकृष्ट हो रहे हैं। एवं वैश्वीकरण ने लोगों के आचार – विचारों में भी परिवर्तन ला दिया है। अब गाँव में भी लोकगीतों की ओर से मन हट रहे हैं।

आ) ‘लोकगीत’ पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं? लिखिए।
उत्तर:
पाठ का नाम : लोकगीत
पाठ का लेखक : श्री भगवतशरण उपाध्याय
पाठ की विधा : निबंध

सारांश : हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है। मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है।

लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता का संगीत है। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।

स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लेते हैं। ये गीत बाजों, ढोलक, करताल, झाँझ और बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। मध्यप्रदेश, दक्कन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं।

पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं। वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं। सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रेदश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं।

बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं। पंजाब में महिया गायी जाती है। राजस्थानी में ढ़ोला – मारू आदि गीत गाते हैं। भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है।

इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती हैं। इन गीतों में करुणा और बिरह का रस बरसता है।

जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं। एक दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं। आल्हा एक लोकप्रिय गान है।

गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है।

नीति : वैश्वीकरण के कारण लोकगीतों का नाश हो रहा है। इन्हें बचाये रखना हमारा कर्तव्य है।

इ) अपने आसपास के क्षेत्र में प्रचलित किसी लोकगीत का हिंदी में अनुवाद कीजिए।
उत्तर:
लल्ला लल्ला लोरी

मुकेश
लल्ला लल्ला लोरी, दूध की कटोरी
दूध में बताशा, मुन्नी करे तमाशा
छोटी – छोटी प्यारी – प्यारी सुन्दर परियों जैसी है
किसी की नज़र ना लगे, मेरी मुन्नी ऐसी है
शहद से भी मीठी, दूध से भी गोरी
चुपके – चुपके, चोरी – चोरी, चोरी
लल्ला लल्ला लोरी …
कारी रैना के माथे पे, चमके चाँद सी बिंदिया
मुन्नी के छोटे – छोटे नैनों में खेले निंदिया
सपनों का पलना, आशाओं की डोरी
चुपके – चुपके, चोरी – चोरी, चोरी
लल्ला लल्ला लोरी ……….

लता

लल्ला लल्ला लोरी, दूध की कटोरी
दूध में बताशा, जीवन खेल तमाशा
आधी मुरझा जाती है, थोड़ी सी कलियाँ खिलती हैं
सारी की सारी खुशियाँ, जीवन में किसको मिलती हैं
या टूटे पलना, या टूटे डोरी
चुपके – चुपके, चोरी – चोरी, चोरी
लल्ला लल्ला लोरी ….
लिखने को लिखवाती मैं, आगे क्या है गाना
लेकिन मैं क्या करती, तेरे पापा को था जाना
मुझसे भी छिपकर, तुझसे भी चोरी
चुपके – चुपके, चोरी – चोरी, चोरी
लल्ला लल्ला लोरी …..

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ई) लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं। अपने शब्दों में इसे सिद्ध कीजिए।
उत्तर:

  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर लोकगीत गाये जाते हैं। ये गाँवों और देहातों में गाये जाते हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • लोकगीतों को गाने वाली भी अधिकतर गाँवों की स्त्रियाँ ही हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • इनके लिए कोई साधना की जरूरत भी नहीं होती है। * इसलिए इनमें मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएं हैं।
  • इन देहाती गीतों के रचयिता कोरी कल्पना को मान न देकर अपने गीतों के विषय रोजमर्रा के बहते जीवन से लेते हैं जिससे वे सीधे मर्म को छू लेते हैं।
  • इनके राग भी साधारणतः पीलु, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि हैं। इसलिए भी इन गीतों में ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • इन लोकगीतों की भाषा के संबंध में कहा जा चुका है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं।
  • इस कारण ये आलादकारक और आनंददायक होते हैं। इसीलिए भी इनमें ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।

भाषा की बात

अ) कोष्ठक में दी गयी सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।

प्रश्न 1.
साधना, त्यौहार, देहात (एक – एक शब्द का वाक्य प्रयोग कीजिए। पर्याय शब्द लिखिए।)
उत्तर:
वाक्य प्रयोग

  1. साधना . – शास्त्रीय संगीत गाने के लिए साधना की ज़रूरत होती है।
  2. त्यौहार – दीपावली हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है।।
  3. देहात – लोकगीतों का संबंध देहात की जनता से है।

पर्याय शब्द

  1. साधना – अभ्यास, तपस्या
  2. त्यौहार – पर्व, उत्सव
  3. देहात – गाँव, ग्राम

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प्रश्न 2.
सजीव, परदेशी, शास्त्रीय (एक – एक शब्द का विलोम शब्द लिखिए। वाक्य प्रयोग कीजिए ।)
उत्तर:
विलोम शब्द

  1. सजीव × निर्जीव
  2. परदेशी × स्वदेशी
  3. शास्त्रीय × अशास्त्रीय

वाक्य प्रयोग

  1. सजीव – जो आज सजीव है कल यह निर्जीव अवश्य होगा।
  2. परदेशी – यह परदेशी होने पर भी हमारे स्वदेशी जैसे ही भारतीय संस्कृति को अपनाकर रहता है।
  3. शास्त्रीय – तुम जो राग का आलापना कर रही हो यह शास्त्रीय संगीत का नहीं अशास्त्रीय संगीत का है।

प्रश्न 3.
यह आदिवासी का संगीत है। (वचन बदलकर वाक्य फिर से लिखिए।)
उत्तर:
यह आदिवासियों का संगीत है।

आ) सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।

प्रश्न 1.
लोकगीत, लोकतंत्र (इस तरह ‘लोक’ शब्द के साथ बने दो शब्द लिखिए।)
उत्तर:
लोकपालक, लोकसभा

प्रश्न 2.
गायक, कवि, लेखक (लिंग बदलिए। याक्य प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:

  1. गायक – गायिका, गायनी
  2. कवि – कवइत्री
  3. लेखक – लेखिका

वाक्य प्रयोग

  1. गायक – लताजी एक प्रसिद्ध गायिका हैं।
  2. कवि – हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा सफल कवयित्री मानी जाती है।
  3. लेखक – सरोजिनी नायुडु एक अच्छी लेखिका भी है।

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प्रश्न 3.
धर्म, मास, दिन, उत्साह (“इक” प्रत्यय जोड़कर वाक्य प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:
धार्मिक, मासिक, दैनिक, औत्साहिका
वाक्य प्रयोग

  • दशहरा एक धार्मिक पर्व है।
  • लोकगीतों से दैनिक जीवन में उत्साह मिलता है।
  • विपुला एक मासिक पत्रिका है।
  • आज अनेक औत्साहिक गायक गा सकते हैं।

इ) इन्हें समझिए और अतंर स्पष्ट कीजिए।

1. उपेक्षा – अपेक्षा
2. कृतज्ञ – कृतघ्न
3. बहार – बाहर
4. दावत – दवात
उत्तर:
1. उपेक्षा – अपेक्षा
उपेक्षा = उदासीनता, अवहेलना, तिरस्कार आदि अर्थों में इसका प्रयोग होता है। यह “अपेक्षा” शब्द का विलोम शब्द भी है।

अपेक्षा = तुलना, चाह, आशा आदि अर्थों में इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह उपेक्षा शब्द का विलोम शब्द है।

2. कृतज्ञ – कृतघ्न
कृतज्ञ = अनुग्रहीत, आभारी, ऋणी आदि अर्थों में इसका प्रयोग होता है। यह कृतघ्न का विलोम शब्द है। उपकार मानने वाले को कृतज्ञ कहा जाता है।

कृतघ्न = उपकार न माननेवाला, ना शुक्रा यह कृतज्ञ का विलोम शब्द भी है।

3. बहार – बाहर
बहार = खिलती हुई जवानी, वंसत ऋतु, शोभा मजा, तमाशा आदि अर्थों में इस शब्द का प्रयोग किया जाता है।

बाहर = स्थान या वस्तु विशेष की सीमा के उस पार, अलग, दूर, अन्यत्र आदि अर्थों में इस शब्द का प्रयोग होता है।

4. दावत – दवात
दावत = भोज का निमंत्रण – इस शब्द का अर्थ है।
दवात = इस शब्द का अर्थ है स्याही रखने का बरतन या शीसा।

5. पेड़ पर बड़ा पक्षी है पर उसके छोटे – छोटे पर हैं।
उत्तर:
यहाँ “पर” शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में किया गया है।
1) पर → कारक के रूप में
2) पर → लेकिन के अर्थ में और
3) पर → पंख के अर्थ में।

6. हल चलाने से मात्र ही किसान की समस्याएँ हल नहीं होती।
उत्तर:
यहाँ “हल” शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया गया है।
1) हल = खेत जोतने का एक साधन
2) हल = सुलझाव या परिष्कार

ई) नीचे दिया गया उदाहरण समझिए। उसके अनुसार दिये गये वाक्य बदलिए।
1.
AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 5 लोकगीत 1
उत्तर:
AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 5 लोकगीत 2
2.
AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 5 लोकगीत 3

उत्तर:
1. स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं।
क्या स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं?
स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं न!

2. लोकगीत के कई प्रकार हैं।
क्या लोकगीत के कई प्रकार हैं?
लोकगीत के कई प्रकार हैं न !

परियोजना कार्य

यहाँ दिये गये चित्र ध्यान से देखिए। ये चित्र भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखे गये एक प्रहसन नाटक से संबंधित हैं। इसी नाटक को कवि सोहनलाल द्विवेदी जी ने कविता के रूप में सृजन किया है। अपने पुस्तकालय या अन्य स्त्रोतों से उस नाटक या कविता का संग्रह कर कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 5 लोकगीत 4

उत्तर:
यदि हम सूझ – बूझ से काम लेंगे तो बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना भी आसानी से कर सकते हैं। इस भावना पर आधारित प्रहसन नाटक “अंधेर नगरी’ यहाँ प्रस्तुत है।
पात्र
(महंत, नारायणदास, गोवर्धनदास, घासीराम, हलवाई, शिष्य, राजा, फ़रियादी, कल्लू, कारीगर, चूने वाला, भिश्ती, कमाई, गड़रिया, कोतवाल, सिपाही।)

लोकगीत Summary in English

There is a difference between the freshness of folk songs and classical music. Folk songs are classical music. They are the songs of family and the people of villages and cities. They need no practice. They are sung on special occasions and festivals. They are mostly written by the village people. Women also take part in these works. These songs are sung with the help of drum, cymbals, castanets, flute, etc.

Once, compared with the classical music, these songs were regarded low. Until recently they were not regarded well. But with the change of the common people’s outlook, the change also occurred in the fields of art and literature. Many people came forward to collect folk songs from different languages. This type of compilations had already been printed.

Folk songs are of many kinds. One of these is very lively and exciting. This is the music of the Adivasis of this country. The tribes namely Gond – Khand, Orav – Munda, Bheel – Santal are spread over Madhya Pradesh, Deccan region and Chota Nagpur. The songs and dances of these people are mostly done one with another or with groups.
The people of hilly regions have their own songs. There are some specific songs for the people of Gadwal, Kinnoure and Kangada, etc. They have their own methods to sing those songs.

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The folk songs are actually concerned with the people of the rural areas of the country. The songs of Chaita, Kajari, Barahmasa, Shravana, etc., are sung in Mirzapur, Banaras, eastern Uttar Pradesh and western districts of Bihar.

Baol and Bhatiali etc., are the folk songs belonged to Bengal. The songs of Mahia in Punjab also fall in this category. The songs concerned with ‘Heer – Ram Jha’, ‘Sohani – ‘Mahival’ of Punjab, the songs such as ‘Dhola – Maru’ of Rajasthan are sung with much enthusiasm and fervour.

The writers of these songs of rural areas, without giving importance to imaginations, take the issues concerned with daily life and write songs on them. So they are heart – touching. The tunes of those songs are Pilu, Sarangam, Durga, Sawan, Sorat, etc. The songs Kaharwa, Biraha, Dhobia, etc., are mostly sung in villages and they attract a large number of people.

The language of these folk songs is familiar and tunes are catchy and so they have been successful. Bidesia was propagated for almost 30 – 40 years in Bhojapuri. The groups of singers roam about the villages while singing these songs. There were no more popular songs than these songs in the districts of Bihar. In these songs the main aspect is about romance of lovers and lovesick of alien lovers.

In the regions like Biraha the songs belonging to tribal races are mostly sung. But of late, these songs are losing their prominence.

Another type of most popular one is the song Alha. The people in the region of Bundelkhand sing these songs. The royal poet Jaganik of the Chandel kings is said to be the originator of these songs. In his great epic, he described the powers of Alha – Udal. Following the prosody in his works, other village poets wrote songs which are being sung even now zestfully.

There are numerous songs of women in our country. These too are folk songs. Generally women alone sing these songs. Men are also there among the writers and singers of these songs. There are mostly women related aspects in these songs. In this regard, India is different from all other countries.

The women sing melodious songs on some auspicious occasions – while going to take river bath ; during festivals; during feasts, marriages, birthday celebrations, etc. These songs are being sung since ancient times. The great poet Kalidas also included these songs in his works.

The songs such as Maithil, Kokil, Vidyapati are mostly sung in eastern regions. There are many educated people who sing these songs from Kashmir to Kanyakumari, from Katiyavada to Gujarat, from Rajasthan to Odisha – Andhra.

Gorba is one kind of group song in Gujarat. Women sing this song while dancing in a circular way. It became popular in all regions.

The songs of rural areas are really of many kinds. As their lives go in a peaceful and harmonious way, there would be no deficiency for delightful experiences. It can be said that the songs are the symbols of their blithesome lives.

लोकगीत Summary in Telugu

జానపద గీతాల తాజాదనం, లోక ప్రియత్వంతో శాస్త్రీయ సంగీతంతో తేడా కలదు. జానపద గీతాలు ప్రజల సంగీతం. కుటుంబ, గ్రామ, నగర ప్రజల పాటలు. వీటికి సాధన అవసరం లేదు. పండుగలు మరియు విశేష అవసరాలప్పుడు వీటిని పాడతారు. ఎప్పుడూ ఇవి పాడబడతాయి. వీటిని రచించేవారు కూడా ఎక్కువగా గ్రామ ప్రజలే. స్త్రీలు కూడా వీటి రచనలో విశేషంగా పాల్గొన్నారు. ఈ పాటలు బాజాల సహాయంతో కాకుండా సాధారణ డోలు, చేతితాళం, తప్పెట్లు, పిల్లనగ్రోవి మొ॥గు వాని సహాయంతో పాడబడతాయి.

ఒకనాడు శాస్త్రీయ సంగీతం ముందు వీటిని చులకనగా, హేయంగా భావించేవారు. ఈ మధ్యవరకు వీటిని బాగా ఉపేక్షించేవారు. కానీ ఇటు సాధారణ ప్రజల వైపునుండి దృష్టి మరలడం వల్ల సాహిత్యం మరియు కళా రంగాలలో కూడా మార్పు వచ్చింది.

అనేక మంది వివిధ భాషలకు చెందిన జానపద గీతాలను సంగ్రహించుటకు నడుము బిగించారు. ఇలాంటి సంగ్రహాలు ఎన్నో ఇప్పటికీ ముద్రించబడియున్నవి.

జానపద గీతాలు ఎన్నో రకములు. వీటి ఒక రకం చాలా ఉత్తేజకంగా సజీవంగా ఉంటాయి. ఇది ఈ దేశ ఆదివాసీల సంగీతం. మధ్యప్రదేశ్, దక్కన్, చోటానాగపూర్‌లో గోండ్ – ఖాండ్, ఓరావ్ – ముండా, భీల్ – సంతాలు వ్యాపించి యుండిరి. వీరి పాటలు – నృత్యాలు ఎక్కువగా ఒకరితో ఒకరు లేదా గుంపులు గుంపులుగా పాడబడతాయి. నాట్యం చేయబడతాయి. 20 – 20 మంది, 30 – 30 మంది పురుషులు – స్త్రీల దళాలు ఒకరికి ఒకరు జవాబుగా పాడతారు, దిక్కులన్నీ పిక్కటిల్లుతాయి (ప్రతిధ్వనిస్తాయి).

AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 5 लोकगीत

పర్వత ప్రాంతాలవారికి వారి – వారి పాటలు ఉంటాయి. వారి మధ్య భిన్న – భిన్న రూపాలు ఉన్నప్పటికి అశాస్త్రీయం కారణంగా వారికి ఒక సమాన భూమి ఉంది. గద్వాల్, కిన్నోర్, కాంగడా మొ||వారికి తమ తమ పాటలు ఉన్నవి. వాటిని, పాడడానికి వారి – వారి పద్ధతులున్నవి. వాటి వేరొక పేరే “పహాడీ” అని వచ్చినది.

వాస్తవిక జానపద గీతాలు దేశంలోని గ్రామ ప్రాంతాలవారివి. వీటి సంబంధం కూడా గ్రామ ప్రాంతాల ప్రజలతోనే ఉంది. చైతా (చైత్రం) కజరీ, బారహ్మ సా (12 నెలలు), శ్రావణం మొ||నవి. మీర్జాపూర్, బనారస్ మరియు తూర్పు ఉత్తరప్రదేశ్ లో మరియు బీహార్ లోని పశ్చిమ జిల్లాల్లో, పాడబడుచున్నవి.

బావుల్ మరియు భతియాలీ అనునవి బెంగాలకు చెందిన జానపద గీతాలు, పంజాబ్ లోని మాహియా మొ||నవి ఇలాంటివే. “హీర్ – రాం ఝా”, “సోహనీ – మహీవాల్”లకు సంబంధించిన పాటలు పంజాబ్ లో “డోలా – మారు” మొదలగు పాటలు రాజస్థాన్లలో చాలా ప్రీతిగా (ఇష్టంగా) పాడబడుచున్నవి.

ఈ గ్రామీణ ప్రాంతాల పాటల రచయితలు ఊహ (కల్పన)లకు ప్రాధాన్యతనీయక రోజువారి జీవితానికి సంబంధించిన విషయాలను తీసుకుని వాటిపై పై పాటలు వ్రాస్తారు. అందువలన అవి హృదయాలను స్పృశిస్తాయి. వాటి రాగాలు కూడా సాధారణంగా పీటా, సారంగం, దుర్గా, సావన్, సోరన్ మొ||నవి.

కహార్ వా, బిరహా, ధోబియా అనునవి పల్లెల్లో ఎక్కువగా పాడబడును. ఇవి ఎందరినో ఆకర్షించును.

వీని భాషను గురించి చెప్పవలెనన్న ఈ జానపద గీతాలు అన్నియూ గ్రామాలు మరియు ఇలాకాలకు సంబంధించిన భాషలలోనే పాడబడును. ఈ కారణంగానే ఇవి ఆహ్లాదభరితంగా ఆనందదాయకంగా ఉండును. ఈ పాటల రాగం కూడా ఆకర్షణీయంగా ఉంటుంది. వీరికి తెలిసిన భాష కావడం కూడా వీటి విజయానికి కారణం.

భోజపురిలో దాదాపుగా 30 – 40 సం||లో “బిదేసియా” కు ప్రచారం జరిగినది. పాటలు పాడే అన్ని సమూహాలు ఈ పాటలను పాడుతూ గ్రామాల్లో తిరుగుతారు. విశేషంగా బీహార్ లోని జిల్లాల్లో బిదేసియాను మించి పాటలు లోకప్రియమైనవి లేవు. ఈ పాటల్లో ఎక్కువగా రసికప్రియ మరియు ప్రేయసి ప్రియుల విషయాలు ఉంటాయి. పరదేశీ ప్రేమికుల విరహరసం వీటిలో ఉంటాయి.

ఆటవిక జాతుల దళాలకు సంబంధించిన పాటలు కూడా ఎక్కువగా బిరహా మొ||గు ప్రాంతాలలో పాడబడుచున్నవి. ఒకవైపు పురుషులు మరొకవైపు స్త్రీలు ఒకరికొకరు జవాబు (బదులు)గా దళంగా ఏర్పడి దిక్కులు పిక్కటిల్లేలా (ప్రతిధ్వనించేలా) పాడతారు. కానీ ఇక్కడ కొంతకాలం నుండి ఈ విధమైన గుంపులతో కూడిన పాటలు తగ్గిపోయినవి.

మరొక విధమైన గొప్ప లోకప్రియమైన పాట ఆలా ఎక్కువగా వీటిని బుందేల్ ఖండ్ ప్రాంతంలో పాడెదరు. వీటి ప్రారంభకునిగా చందేలు రాజుల రాజకవి జగనిక్ గా చెప్పబడుతుంది. ఆయన ఆలా – ఊదల్ల వీరత్వాన్ని గురించి తన మహాకావ్యంలో వర్ణించెను. ఈయన రచించిన ఛందస్సును తీసుకుని వేరే గ్రామ కవులు వివిధ సమయాలలో తమ పాటల్లో చేర్చిరి. ఈ పాటలు (గీతాలు) ఈ రోజున కూడా చాలా ప్రేమగా పాడబడుచున్నవి. వీటిని పాడు గాయకులు గ్రామ గ్రామం ఢోలు తీసుకుని పాడుతూ తిరుగుతారు. కొందరు నటులు తాళ్ళపై ఆడుతూ పాడే పాటలు కూడా ఈ కోవకు చెందినవి. ఎక్కువగా ఇవి గద్య – పద్యాత్మకంగా ఉంటాయి.

మన దేశంలోని స్త్రీల పాటలు కూడా అనంత సంఖ్యలో ఉంటాయి. ఇవి కూడా జానపద గీతాలే. ఎక్కువగా వీటిని ఆడవారే పాడతారు.

అలాగని మగవారు వ్రాసేవారు మరియు పాడేవారు కూడా ఎక్కువగానే ఉన్నారు. కాని ఈ పాటలు ఎక్కువగా స్త్రీలకు సంబంధించిన విషయాల పైనే ఉంటాయి. ఈ విషయంలో భారతదేశం ఇతర అన్ని దేశాలతో భిన్నంగా ఉన్నది. ఎందుకంటే ప్రపంచంలోని ఇతర దేశాలలో స్త్రీల పాటలు మగవారి పాట లేదా జానపద గీతాలకు భిన్నంగా ఉండవు. కలసి మెలసి ఉంటాయి.

పండుగలప్పుడు నదులలో స్నానం చేస్తూ స్నానానికి వెళుతూ దారిలో పాడే పాటలు, వివాహ సమయంలో, విందుల సందర్భాలలో బంధువులను ప్రేమగా తిడుతూ, పుట్టిన సందర్భం మొ||గు అవసరాలకు సంబంధించిన వేరు – వేరు పాటలు స్త్రీలు పాడతారు. ఈ అవసరాలకు సంబంధించి కొంతమంది ఇప్పుడే కాదు చాలా ప్రాచీన కాలం నుండి పాడుతున్నారు. మహాకవి కాళిదాసు మొ||గు వారు కూడా తమ గ్రంథాలలో ఈ పాటలను చేర్చిరి. సోహర్, బానీ, సహరా మొ॥గు వారి అనంతమైన పాటల్లోని ముఖ్యమైనవి. పన్నెండు నెలల (బారహ్ మాసా) పాటలను పురుషులతో పాటు స్త్రీలు కూడా పాడతారు.

ఒక విశేషమైన మాట (విషయం) ఏమిటంటే ఆడవారి పాటలు సాధారణంగా ఒంటరిగా పాడబడవు గుంపులుగా ఏర్పడి పాడబడతాయి. అనేక గొంతులు ఒక్కసారిగా కలసి పాటను అందుకుంటాయి. ఎక్కువగా ఈ పాటలను పండుగలు, శుభసందర్భాలలో చాలా బాగా పాడతారు. గ్రామాలలో, నగరాలలో గాయకురాళ్ళు కూడా ఉంటారు. వీరు వివాహం పుట్టిన రోజు మొదలగు అవసరాలలో (సందర్భాలలో) పాడటానికి పిలువబడతారు. అన్ని ఋతువుల్లో స్త్రీలు ఉల్లాసంగా గుంపులుగా ఏర్పడి పాడతారు. హోళీ వర్షాకాలపు కజరీలు మొ॥గు సమయాలలో వీరి పాటలు వినసొంపుగా ఉంటాయి. తూర్పు ప్రాంతాలలో ఎక్కువగా మైథిల్, కోకిల్, విద్యాపతి పాటలు పాడబడతాయి. కాశ్మీరు నుండి కన్యాకుమారి వరకు, కాటియవాడ నుండి గుజరాత్, రాజస్థాన్ నుండి ఒరిస్సా – ఆంధ్ర వరకు ఎందరో తమ తమ పాటలను పాడు విద్యావంతులు కలరు.

స్త్రీలు డోలక్ సహాయంతో పాడతారు. ఎక్కువమంది వారి పాటలతో పాటు నాట్యం కూడా చేస్తారు. గుజరాత్ లో ఒక విధమైన గుంపు పాట గర్ బా. దీన్ని విశేషరీతిలో గుండ్రంగా ఉండి తిరిగి – తిరిగి ఆడవాళ్ళు పాడతారు. వీరికి తోడు బాలికలు కూడా బాజాలు వాయిస్తారు. దీనిలో నాట్యం – పాడటము వెంట – వెంట జరుగుతాయి. వస్తుతః ఇది నాట్యం. అన్ని ప్రాంతాల్లో కూడా ఇది లోక ప్రసిద్ధి చెందినది. ఇదేవిధంగా హోళీ సందర్భంగా బ్రజంలో రసియా ఆడతారు. దీనిని దళంలోని సభ్యులు పాడతారు. ముఖ్యంగా స్త్రీలే పాడెదరు.

గ్రామంలోని పాటలు వాస్తవంగా అనేక రకాలు. జీవితం వైభవోపేతంగా సాగిపోతూ ఉంటే అక్కడ ఆనందభరిత ఆధారాలకు కొరత ఏముంటుంది? ‘ఆనందమయమైన జీవనానికీ పాటలు సంకేతం.

अभिव्यक्ति-सजनात्मकता

2 Marks Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो या तीन वाक्यों में लिखिए।

प्रश्न 1.
पहाडी लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:

  • पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं।
  • उनके अपने – अपने भिन्न रूप होते हुए भी अशास्त्रीय होने के कारण उनमें अपनी एक समान भूमिका है।
  • गढ़वाल, किन्नौर, काँगडा आदि के अपने – अपने गीत और उन्हें गाने की अपनी – अपनी विधियाँ हैं।
  • उनका अलग नाम ही पहाड़ी पड गया है।

प्रश्न 2.
‘गरबा’ लोकगीत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
गरबा गुजरात का लोकप्रिय दलीय गायन है। इसमें स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। एक विशेष विधि से घेरे में घूम-घूमकर औरतें गाती हैं। इसमें नाच-गान साथ – साथ चलते हैं।

उपर्युक्त इन सभी कारणों से लोकगीत का चलन अधिकतर देहातों में ही रहता है।

प्रश्न 3.
लोकगीत और शास्त्रीय संगीत में क्या अंतर है?
उत्तर:

  • लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न है।
  • लोकगीत सीधे जनता के संगीत है । लोकगीत घर, गाँव और नगर की जनता के गीत है।
  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।

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इनके अलावा शास्त्रीय संगीत के लिए तो कई साधनों की ज़रूरत नहीं होती । शास्त्रीय संगीत के लिए साधना की भी ज़रूरत है।

प्रश्न 4.
लोकगीत किन – किन रागों में गाये जाते हैं?
उत्तर:
लोकगीत साधारणतः पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठा आदि रागों में गाये जाते हैं।

प्रश्न 5.
लोकगीतों की भाषा कैसी होती है?
उत्तर:
लोकगीतों की भाषा के संबंध में कहा जा चुका है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं । इसी कारण ये बडे आलाद कारक और आनंददायक होते हैं ।

प्रश्न 6.
“पहाड़ी’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
पहाडी क्षेत्रों में रहने वाले पिछडे जातियों को पहाडी कहा गया है। इनके अपने – अपने गीत हैं।जैसे गढवाल, किन्नौर, काँगडा आदि के अपने – अपने गीत होते हैं। इनके गाने की विधियाँ भी अलग हैं। उनका
अलग नाम ही ‘पहाडी’ पड गया हैं।

प्रश्न 7.
वास्तविक लोकगीत कैसे होते हैं?
उत्तर:
वास्तविक लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। इसी कारण ये बडे आहलादकर और आनंददायक होते हैं। राग तो इन गीतों के आकर्षक होते ही हैं। इनकी समझी जा सकने वाली भाषा भी इनकी सफलता का कारण है। अतः इसका पूर्व संबंध देहातों की जनता से है।

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प्रश्न 8.
“बिदेसिया’ लोकगीत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बिदेसिया लोकगीत का प्रचार तीस – चालीस वर्षों से बिहार में भोजपुरी भाषा में हुआ। बिहार में “बिदेसिया” लोकगीत लोकप्रिय हैं। इन लोकगीतों में रसिक प्रिय, प्रियाओं की बात रहती है। इनमें परदेशी प्रेमी की और । इनसे करुणा और विरह का रस बरसता है।

प्रश्न 9.
पंजाब के लोकगीतों के बारे में लिखिए।
उत्तर:

  • लोकगीत सीधे जनता के संगीत है। ये ओजस्वी और सजीव हैं।
  • पंजाब में माहिया आदि इसी प्रकार के हैं।
  • हीरा – राँझा, सोहनी – महीवाल आदि लोकगीत पंजाब में बड़े चाव से गाये जाते हैं।

अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता

4 Marks Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
लोकगीतों का चलन अधिकतर देहातों में ही क्यों रहता है?
उत्तर:
लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। सदा से ये गाये जाते रहे हैं और इनके रचनेवाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार तो बड़ा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं। इनका संबंध देश के देहाती जनता से संबंध हैं। उनके राग भी साधारणतः पीलु, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि हैं।

प्रश्न 2.
‘आल्हा’ के गीतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:

  • एक – दूसरे प्रकार के बड़े लोकप्रिय गाने आल्हा के हैं ।
  • अधिकतर ये बुंदेलखंडी में गाये जाते हैं |
  • आरंभ तो इसका चंदेल राजाओं के राज कवि जगनिक से माना जाता है।
  • उन्होंने आल्हा – ऊदल की वीरता का अपने महाकाव्य में बखान किया ।
  • ये गीत हमारे गाँवों में आज भी बहुत प्रेम से गाये जाते हैं ।
  • इन्हें गानेवाले गाँव – गाँव ढोलक लिये गाते फिरते हैं। अधिकतर ये पद्य – गद्यात्मक हैं |

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प्रश्न 3.
स्त्रियाँ किन – किन अवसरों पर लोकगीत गाती हैं?
उत्तर:

  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर स्त्रियाँ लोकगीत गाती हैं।
  • त्यौहारों पर नदियों में नहाते समय के, नहाने जाते हुए राह के, विवाह के , मटकोड, ज्यौनार के संबंधियों के लिए प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलण – अलण गीत भी स्त्रियों से गायी जाती हैं | बारहमासा गीत भी स्त्रियाँ गाती हैं |
  • विवाह और जन्म आदि के अवसरों पर स्त्रियाँ लोकगीत गाती हैं ।

प्रश्न 4.
शास्त्रीय संगीत के सामने लोकगीत हेय माने जाते हैं – क्यों?
उत्तर:

  • शास्त्रीय संगीत तो सचमुच शास्त्रीय है ।
  • शास्त्रीय संगीत के लिए साधना की आवश्यकता है।
  • शास्त्रीय संगीत के लिए शिक्षण की भी आवश्यकता है |
  • शास्त्रीय संगीत के लिए विभिन्न राग, ताल तथा लय तथा संगीत का अध्ययन की आवश्यकता है ।
  • शास्त्रीय संगीत के लिए विविध प्रकार के संगीत वाद्यों और साधनों की आवश्यकता है।’
  • लेकिन लोकगीतों के लिए इन सबकी कोई आवश्यकता नहीं । इसलिए शास्त्रीय संगीत के सामने एक समय लोकगीत हेय माने जाते हैं।

प्रश्न 5.
मनोरंजन की दुनिया में लोकगीत का महत्वपूर्ण स्थान है । साबित कीजिए।
उत्तर:

  • मनोरंजन की दुनिया में लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है ।
  • इस विषय में कोई अतिशयोक्ति नहीं है ।
  • हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है।
  • गीत – संगीत के बिना हमारे मन रसा से नीरस हो जाता है ।
  • लोकगीत जो हैं वे घर गाँव और जनता के गीत हैं ।
  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं ।
  • इन के लिए कोई साधना तथा साधन की ज़रूरत नहीं होती।
  • ये बड़े आहलादकर और आनंददायक होते हैं ।
  • त्यौहारों पर, नदियों में नहासमय के, नहाने जाते हुए राह के, विवाह के, मटकोड, ज्यौनार के, संबंधियों के प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों में ये गाये जाते हैं।

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प्रश्न 6.
बारहमासा लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बारहमासा लोकगीत बारह महीनों में आवश्यकतानुसार गाये जा सकते हैं। जायसी का “पद्मावत्” नागमति का विरह वर्णन बारहमासा में ही लिखा गया है। बारहमासा लोकगीत की परंपरा अत्यन्त प्राचीन है। आषाढ मास में बारहमासा गीत प्रारम्भ हो जाता है। विरहिणी नारी के लिए बारह महीनों का प्रत्येक क्षण बडा भारी होता है। उसे एक – एक पल घुट – घुट कर महसूस – महसूसकर बिताना पडता है।
विरहिणी स्त्री अपनी प्रियतम का स्मरण कर हर वक्त रोती – कराहती रहती है।

प्रश्न 7.
लोकगीतों को आज मनोरंजन का साधन कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर:

  • लोच, ताजगी भरा कर लोकगीतों को मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता है।
  • साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से लोकगीतों को मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता है।
  • गाँवों और इलाकों की बोलियों के कारण इन्हें मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता हैं।
  • नाच – गान दोनों साथ-साथ चलाने के कारण इन्हें मनोरंजन का साधन बना सकेंगे।

अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता

8 Marks Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर आठ या दस पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
हमारे जीवन में लोकगीतों का क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पाठ का नाम : “लोकगीत” है।
लेखक का नाम : “श्री भागवतशरण उपाध्याय” है।
हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है। मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है।

लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता का संगीत है। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।

स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लिये हैं। ये गीत बाजों, ढोलक, करताल, झाँझ और बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। मध्यप्रदेश, दक्कन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं।

पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं। वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं। सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रेदश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं।

बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं। पंजाब में महिया गायी जाती है। राजस्थानी में ढोला – मारू आदि गीत गाते हैं। भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है।

इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती हैं। इन गीतों में करुणा और बिरह . का रस बरसता है।

जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं। एक दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं। आल्हा एक लोकप्रिय गान है।

गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। उनके गाने के साथ नाच. का पुट भी होता है।

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प्रश्न 2.
“लोकगीतों का संबंध विशेषतः स्त्रियों से है।” – इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:

  • अनंत संख्या अपने देश में स्त्रियों के गीतों की है। ये भी लोकगीत हैं।
  • इन गीतों का संबंध विशेषतः स्त्री से हैं।
  • एक विशेष बात यह है कि नारियों के गाने साधारणतः अकेले नहीं गाये जाते हैं, दल बाँधकर गाये जाते हैं।
  • अनेक कंठ एक साथ फूटते हैं यद्यपि अधिकतर उनमें मेल नहीं होता, फिर भी त्यौहारों और शुभ अवसरों पर वे बहुत ही भले गाते लगते हैं।
  • गाँवों और नगरों में गायिकाएँ भी होती हैं जो विवाह, जन्म आदि के अवसरों पर गाने के लिए बुला ली जाती हैं।
  • सभी ऋतुओं में स्त्रियाँ उल्लासित होकर दल बाँधकर गाती हैं। पर होली,बरसात की कजरी आदि तो उनकी अपनी चीज़ है, जो सुनते ही बनती है।पूरब की बोलियों में अधिकतर मैथिल – कोकिल के गीत गाये जाते हैं। पर सारे देश के कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कठियावाड – गुजरात – राजस्थान से उड़ीसा-तेलंगाणा तक अपने – अपने विद्यापति हैं।
  • स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। अधिकतर उनके गाने के साथ नाच का भी पुट होता है।
  • गुजरात का एक प्रकार का दलीय गायन ‘गरबा’ है जिसे विशेष विधि से घेरे में घूम-घूमकर औरतें
    गाती हैं। * साथ ही लकड़ियाँ भी बजाती जाती हैं। जो बाजे का काम करती हैं।
  • इसमें नाच-गान साथ-साथ चलते हैं। वस्तुतः यह नाच ही है। सभी प्रांतों में यह लोकप्रिय हो चला है।
  • इसी प्रकार होली के अवसर पर ब्रज में रसिया चलता है जिसे दल के दल लोग गाते हैं, स्त्रियाँ विशेष तौर पर।

प्रश्न 3.
शास्त्रीय संगीत की तुलना में लोकगीत अपना एक विशेष स्थान रखते हैं, इस कथन की पुष्टि करते हुए अपने क्षेत्रीय लोकगीतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये गीत साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से माये जाते हैं। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती । त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। आदिवासियों का लोकगीत बड़ा ही ओजस्वी और सजीव है। ये मध्य प्रदेश, दक्कन, छोटा नागपुर में गोंड – खांड, भील संथाल आदि में फैले हुए हैं।

इनकी भाषा के संबंध में कहा जाय तो ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। यही इनकी सफलता का कारण है। स्त्रियाँ भी लोकगीतों को सिरजती हैं और गाती हैं। नारियों के गाने साधारणतः दल बाँधकर गाये जाते हैं। विवाह, जन्म, सभी ऋतुओं में, होली, बरसात में ये गीत गाये जाते हैं। सारे देश के कश्मीर से कन्याकुमारी तक और काठियावाड़ गुजरात – राजस्थान से उड़ीसा – आंध्र तक लोकगीत गाये जाते हैं। इनके अपने अपने विद्यापति हैं। गुरजात का दलीय गायन “गरबा” है। होली के अवसर पर ब्रज में रसिया चलता है।

गाँव के गीतों के अनंत प्रकार हैं। जीवन जहाँ इठला – इठलाकर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है। उदाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने के प्रतीक हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय संस्कृति लोकगीतों में झलकती है । कैसे?
उत्तर:

  • हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है ।
  • मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है।
  • लोकगीतों से हमें उत्तेजना, उत्साह आदि मिलते हैं ।
  • भारतीय संस्कृति देश के उत्सव, त्यौहार एवं देश के देहातियों और गाँवों के जनता पर निर्भर रहती है।
  • लोकगीतों में अपने – अपने प्रांत की संस्कृति झलकती है।
  • लोकगीत बडा ही ओजस्वी और सजीव है ।
  • इनके द्वारा विभिन्न प्रांतों के लोगों के रहन – सहन, आचार – व्यवहार, रीति – रिवाज़ आदि हमें मालूम होते हैं । लोकगीत त्यौहारों और विशेष अवसरों पर गाये जाते हैं ।
  • लोकगीतों में लोच, ताज़गी और लोकप्रियता है ।
  • त्यौहारों के समय, नदियों में नहाते समय, विवाह के, मटकोड, ज्यौनार के संबंधियों के प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग – अलग लोकगीत गाये जाते हैं | जो देश की संस्कृति को प्रतिबिंबित करते हैं। इसीलिए कहा गया कि भारतीय संस्कृति लोकगीतों से झलकती हैं।

प्रश्न 5.
भारत के विविध प्रकार के लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है । मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है । गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है ।

लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं । लोकगीत सीधे जनता का संगीत है । ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं ।

स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लिये हैं । ये गीत बाजे, ढोलक, करताल, झाँझ और बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं ।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं । इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है । यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है | मध्यप्रदेश, दक्कन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं।

पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं । वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं । सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं । चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस
और उत्तर प्रदेश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं ।

बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं | पंजाब में महिया गायी जाती है | राजस्थानी में ढोला – मारू आदि गीत गाते हैं । भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है ।

इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है । इन गीतों में करुणा और बिरह का रस बरसता है।

जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं । एक-दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं । आल्हा एक लोकप्रिय गान है।

गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं । स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं । उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है।

AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 5 लोकगीत

प्रश्न 6.
ग्रामीण जनता के गीतों का वर्णन लोकगीत पाठ में कैसे प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर:
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार हैं श्री भगवतशरण उपाध्याय । उनका विरचित निबंध है – लोकगीत। इसमें भारतीय लोकगीतों की जानकारी बडे ही सुंदर ढंग से दी गयी है।

लोकगीत ताजा, लयीला, मार्मिक और लोकप्रिय होते हैं वे सीधे जनता के संगीत हैं और गानेवाले भी अधिकतर ग्रामीण ही हैं। लोकगीतों के विषय ग्रामीण लोगों की दैनिक गति विधियों से संबंधित होते हैं। इनकी भाषा भी जन भाषा और बोली होती है। स्त्री पुरुष मिलकर नाचते इनको गाते हैं। ये लोकगीत शादी, जन्म, त्यौहार, मनोरंजन आदि विशेष संदर्भो मैं गाये जाते हैं। एक बात में कहना है तो ये ग्रामीण लोगों के मुख्य मनोरंजन साधन हैं। ये गीत बडे आह्लादकर और आनंद दायक होते हैं।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है |मध्यप्रदेश, दक्कन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं।

पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरबी जिलों में गाये जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगाल के लोकगीत हैं। माहिया, हीरा – राँझा सोहनी – महीवाल गीत पंजाब के हैं। राजस्थान में ढोला – मारू आदि गीत गाते हैं। भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है। इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रयाओं की बात रहती है। इन गीतों में करुणा और विरह का रस बरसता है।

नगरों और गाँवों में गायिकाएँ होती हैं। वे होली, बरसात की कजरी आदि गीत गाती है। पूरब की बोलियों में अधिकतर मैथिल – कोकिल विद्यापति के गीत गाये जाते हैं। गुजरात में गरबा ‘गायन’ होता है। जिसमें विशेष विधि से घेरे में घूम-घूम कर गाती हैं। इसमें नाच – गाना एक साथ चलना है। होली पर ब्रज में रसिया भी चलता है। इस प्रकार ग्रामीण जनता के गीतों का वर्णन लोकगीत पाठ में प्रस्तुत किया
गया है।

प्रश्न 7.
लोकगीतों में ग्रामीण जीवन शैली प्रतिबिंबित होती है । कैसे?
उत्तर:
हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है | मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है।

ये लोकगीत घर, गाँव और जनता के गीत हैं। इनके लिए कोई साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। ये गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। ये बडे आह्लादकर और आनंददायक होते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि ये ग्रामीण जनता के मनोरंजक साधन हैं।

  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर लोकगीत गाये जाते हैं। ये गाँवों और देहातों में गाये जाते हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • लोकगीतों को गाने वाले भी अधिकतर गाँवों की स्त्रियाँ ही हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • इनके लिए कोई साधना की ज़रूरत भी नहीं होती है।
  • इसलिए इनमें मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएं हैं।
  • इन देहाती गीतों के रचयिता कोरी कल्पना को मान न देकर अपने गीतों के विषय रोजमर्रा के बहते जीवन से लेते हैं । जिससे वे सीधे मर्म को छू लेते हैं।
  • इनके राग भी साधारणतः पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि हैं।
  • इसलिए भी इन गीतों में ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएं हैं।
  • इन लोकगीतों की भाषा के संबंध में कहा जा चुका है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं।
  • इस प्रकार हम कह सकेंगे कि लोकगीतों में ग्रामीण जीवनशैली प्रतिबिंबित होती है ।

AP SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 5 लोकगीत

प्रश्न 8.
भगवतशरण उपाध्याय जी ने भारत के विविध प्रकार के लोकगीतों के बारे में क्या बताया?
उत्तर:
हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है । मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है । गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है ।

लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं । लोकगीत सीधे जनता का संगीत है । ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं | इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं ।

स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लिये हैं । ये गीत बाजे, ढोलक, करताल, झाँझ और बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं ।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं | इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है | यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है | मध्यप्रदेश, दक्कन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं।

पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं । वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं | सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं । चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं ।

बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं । पंजाब में महिया गायी जाती है। राजस्थानी में ढोला – मारू आदि गीत गाते हैं । भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है ।

इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है । इन गीतों में करुणा और बिरह का रस बरसता है।

जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं । एक – दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं । आल्हा एक लोकप्रिय गान है ।

गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं । स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं । उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है।