AP State Board Syllabus AP SSC 10th Class Hindi Textbook Solutions Chapter 4 कण-कण का अधिकारी Textbook Questions and Answers.
AP State Syllabus SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 4 कण-कण का अधिकारी
10th Class Hindi Chapter 4 कण-कण का अधिकारी Textbook Questions and Answers
InText Questions (Textbook Page No. 19)
प्रश्न 1.
गाँधीजी क्या – क्या करते थे ?
उत्तर:
गाँधीजी अपने आश्रम में सूत कातते थे। कपडे बुनते थे। अनाज के कंकर चुनते थे और चक्की पीसते थे।
प्रश्न 2.
गाँधीजी के अनुसार पूजनीय क्या है ?
उत्तर:
गाँधीजी के अनुसार श्रम ही पूजनीय है।
प्रश्न 3.
हमारे जीवन में श्रम का क्या महत्व है?
उत्तर:
हमारे (मानव) जीवन में श्रम का बहुत बड़ा महत्व है। श्रम ही सफलता की कुंजी है। सफलता हासिल करने और सुखमय जीवन बिताने श्रम ही एकमात्र आधार है। श्रम करने से ही सभी काम संपन्न होते हैं।
InText Questions (Textbook Page No. 20)
प्रश्न 1.
भाग्यवाद का छल क्या है?
उत्तर:
दूसरों की संपत्ति को अपना भाग्य समझकर भोगना भाग्यवाद का छल है। भाग्यवाद के नाम पर धोखे बाज श्रम धन भोगते हैं। वे उसे छल से भोगते हैं।
प्रश्न 2.
नर समाज का भाग्य क्या है?
उत्तर:
श्रम करने का महान गुण और भुजबल ही नर समाज का भाग्य है। नर समाज का भाग्य श्रम और भुजबल है।
प्रश्न 3.
श्रमिक के सम्मुख क्या – क्या झुके हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर श्रमिक का ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस महान श्रमिक के सम्मुख सारीधरती और आसमान नतमस्तक हुए हैं।
प्रश्न 4.
श्रम जल किसने दिया?
उत्तर:
श्रम जल श्रमिक ने दिया।
प्रश्न 5.
मनुष्य का धन क्या है?
उत्तर:
प्रकृति में रखी हुई सारी संपत्ति मनुष्य का धन है।
प्रश्न 6.
कण – कण का अधिकारी कौन है?
उत्तर:
- नर – समाज का भाग्य श्रम है। अर्थात् भुज बल है।
- जो श्रम करता है वहीं कण – कण का अधिकारी है।
- श्रम के हासिल पर जो जीता है वहीं कण – कण का अधिकारी है।
अर्थव्राह्यता-प्रतिक्रिया
अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1.
भाग्य और कर्म में आप किसे श्रेष्ठ मानते हैं? क्यों?
उत्तर:
भाग्य और कर्म में मैं कर्म को ही श्रेष्ठ मानता हूँ। क्योंकि भाग्य पर कोई भरोसा नहीं है। भाग्य से आलसी बनजाते। असफल रहजाते। उससे कुछ भी हो सकता है। कर्म (श्रम) तो सफलता पाने का एकमात्र साधन है। इसका फल सदा अच्छा और सुखदायी ही होता है। श्रम करनेवाला कभी हारता नहीं है। लक्ष्य प्राप्ति अवश्य होती है। श्रम से ही संपत्ति, सुख, यश, स्वावलंबन, संतुष्टि, आत्मतृप्ति आदि ज़रूर प्राप्त होते हैं। कर्मशील व्यक्ति कभी किसी की परवाह भी नहीं करता है।
प्रश्न 2.
श्रम के बल पर हम क्या – क्या हासिल कर सकते हैं?
उत्तर:
मानव जीवन में श्रम का ही महत्व अधिक है। श्रम से ही हम इच्छित फल प्राप्त कर सकते हैं। भाग्य की
अपेक्षा श्रम के बल पर जीत, सफलता, सुख,चैन, ओहदा, संपत्ति, यश आदि हासिल कर सकते हैं। असंभव को भी संभव बनाकर विजय हासिल कर सकते हैं। अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। जीवन को
उज्ज्वल बना सकते हैं।
आ) कविता पढकर नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
प्रश्न 1.
इस कविता के कवि कौन हैं?
उत्तर:
इस कविता (कण – कण का अधिकारी) के कवि हैं डॉ. रामधारी सिंह दिनकर।
प्रश्न 2.
कविता का यह अंश किस काव्य से लिया गया है?
उत्तर:
कविता का यह अंश “कुरुक्षेत्र” काव्य के सप्तम सर्ग से लिया गया है।
प्रश्न 3.
सबसे पहले सुख पाने का अधिकार किसे है? ।
उत्तर:
खूब श्रम करनेवाले श्रमिक को ही सब से पहले सुख पाने का अधिकार है।
प्रश्न 4.
कण – कण का अधिकारी किन्हें कहा गया है और क्यों ? ।
उत्तर:
श्रम के बल पर मानव सब कुछ हासिल कर सकता है। श्रम (मेहनत) करनेवाले के लिए असंभव कुछ भी नहीं है। प्रकृति के कण – कण के पीछे उसी का श्रम है। भाग्य पर भरोसा न करके अपने श्रम पर ही वह निर्भर रहता है। अतः मेहनत (श्रम) करनेवालों को ही कण – कण का अधिकारी कहा गया है और यह सच ही है।
इ) निम्नलिखित भाव से संबंधित कविता की पंक्तियाँ चुनकर लिखिए।
प्रश्न 1.
धरती और आकाश इसके सामने नतमस्तक होते हैं।
उत्तर:
जिसके सम्मुख झुकी हुई,
पृथ्वी, विनीत नभ – तल है।
प्रश्न 2.
प्रकृति में उपलब्ध सारे संसाधन मानव मात्र के हैं।
उत्तर:
जो कुछ न्यस्त प्रकृति में है,
वह मनुज मात्र का धन है
ई) नीचे दिया गया पद्यांश पढ़िए । प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
क़दम – क़दम बढ़ाए जा, सफलता तू पाये जा,
ये भाग्य है तुम्हारा, तू कर्म से बनाये जा,
निगाहें रखो लक्ष्य पर, कठिन नहीं ये सफ़र,
ये जन्म है तुम्हारा, तू सार्थक बनाये जा।
प्रश्न 1.
कवि के अनुसार सफलता किस प्रकार प्राप्त हो सकती है?
उत्तर:
कवि के अनुसार सफलता, मिलजुलकर आगे बढते हुए श्रम करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है।
प्रश्न 2.
हमारा सफ़र कब सरल बन सकता है?
उत्तर:
लक्ष्य पर निगाहें रखकर आगे बढने पर हमारा सफर सरल बन सकता है।
प्रश्न 3.
इस कविता के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
“कर्म का महत्त्व” इस कविता के लिए उचित शीर्षक है।
अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता
अ) इन प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में लिखिए।
प्रश्न 1.
कवि मेहनत करनेवालों को सदा आगे रखने की बात क्यों कर रहे हैं?
उत्तर:
कवि दिनकर जी मनुष्य के श्रम का समर्थन करते हैं। वे स्पष्ट करना चाहते हैं कि प्रकृति कभी भी भाग्यवाद के सामने नहीं झुकती है। आलसी लोग ही भाग्यवाद पर विश्वास रखते हैं। परिश्रमी लोग अपने माथे के पसीने से सब कुछ हासिल कर सकते हैं। काल्पनिक जगत का साकार देनेवाला वही है। उनके सामने पृथ्वी, आकाश, पाताल तक झुक जाते हैं । अतः श्रम करनेवालों को ही सुख भोगने का मौका मिले। सुख भोगने का अधिकार भी उन्हीं को है। विजीत प्रकृति में स्थित कण – कण का अधिकारी वे हीहैं। इसीलिए कवि मेहनत करनेवालों को सदा आगे रखने की बात कर रहे हैं।
प्रश्न 2.
अनुचित तरीके से धन अर्जित करनेवाला व्यक्ति सही है या श्रम करनेवाला ? अपने विचार बताइए।
(या)
आप किसे श्रेष्ट व्यक्ति मानते हैं? अनुचित तरीके से धन अर्जित करनेवाले को या उचित तरीके से धन अर्जित करने वाले को? “कण – कण का अधिकारी’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानव जीवन में श्रम का महत्वपूर्ण स्थान है। श्रम करने से ही मानव इच्छित सुख जीवन बिता सकता है। जीवन यापन के लिए धन की तो आवश्यकता है। पर ऐसे अमूल्य धन को धर्म और न्याय मार्ग से अर्जन करना उत्तम है। इसके विपरीत अनुचित मार्ग से या अनुचित तरीके से धन अर्जित करना कभी भी न्यायोचित नहीं है। ये कानुनन के अपरध हैं। अनुचित तरीके से कमाये धन से सुख की अपेक्षा दुःख ही प्राप्त होता है। किसी भी हालत में यह सही नहीं है। श्रम करके कमानेवाला ही सच्चा और महान व्यक्ति है। अतः मेरे विचार में श्रम करके कमानेवाला और श्रम करनेवाला ही सही व्यक्ति है।
आ) कवि ने मजदूरों के अधिकारों का वर्णन कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कविता का नाम : कण – कण का अधिकारी
कवि का नाम : डॉ. रामधारी सिंह दिनकर
उपाधि : राष्ट्र कवि
जीवन काल : 1908 – 1974
पुरस्कार : ज्ञानपीठ (उर्वशी पर)
रचनाएँ : कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, रेणुका, परशुराम की प्रतीक्ष, रसवंती आदि।
पद्मश्री दिनकर की रचनाएँ देश भक्ति और राष्ट्रीय भावना से भरी हुई हैं। “कण – कण का अधिकारी” नामक कविता कुरुक्षेत्र से ली गयी है। इसमें आपने श्रम का महत्व स्पष्ट करते हुए मज़दूरों के अधिकारों पर प्रकाश डाला है।
1) कवि कहते हैं कि मेहनत और भुज बल ही मानव समाज के एक मात्र अधार हैं। मेहनत ही सफलता की कुंजी है। मेहनत करनेवाले व्यक्ति कभी नहीं हारते। वे हमेशा सफल होते हैं। सारा संसार उनका आदर करता है। उनके सम्मुख पृथ्वी और आकाश भी झुक जाते हैं।
2) श्रम ही जीवन की असली संपत्ति समझनेवाले मज़दूरों को सुखों से कभी ‘वंचित नहीं करना चाहिए खून, पसीना एक करनेवाले श्रमिकों को ही पहले सुख पाने का अधिकार है। इसलिए उनको पहले सुख प्राप्त करने देना है। उनको कभी पीछे नहीं रहने देना है। प्रकृति में जो भी वस्तु रखी हुयी है, वह समस्त मानवों की संपत्ति है।
प्रकृति के कण – कण पर मानव का ही अधिकार है। खासकर श्रम करनेवाले व्यक्तियों द्वारा ही संपत्ति संचित होती है। श्रम से बढ़कर कोई मूल्यवान धन नहीं है।
अतः श्रम करनेवाले मज़दूरों को कोई अभाव नहीं रहनी है। उनको कभी पीछे छोड़ना नहीं चाहिए। सारी संपत्ति पर सबसे पहले उनको ही सुख पाने का अधिकार है। यह अक्षरशः सत्य है। तभी मानवजाति सुख समृद्धियों से अक्षुण्ण रह सकती है।
विशेषता : इस कविता शक्ति के बारे में बताया गया है।
इ) नीचे दिये गये प्रश्नों के आधार पर सृजनात्मक कार्य कीजिए। |
1. कविता में समान अधिकारों की बात की गयी है। ‘समानता” से संबंधित कोई घटना या कहानी अपने शब्दों में लिखिए।
2. अपने शब्दों में लिखी गयी घटना या कहानी से कुछ मुख्यांशों का चयनकर लिखिए।
3. चयनित मुख्यांशों में से मूल शब्द पहचानकर लिखिए।
4. लिखे गये मूल शब्दों में से कुछ शब्दों का चयनकर उस पर छोटी सी कविता लिखिए।
5. लिखी गयी कविता का संदेश या सार एक वाक्य में लिखिए और उससे संबंधित कुछ नारे | बनाइए।
उत्तर:
1. लड़की की जीत (कहानी)
एक गाँव में सोमय्या नामक एक किसान रहता था। उसके दो लडके और एक लडकी थी। सोमय्या के नौ एकड़ की भूमि थी। वह अपने लडकों के सहारे खेतीबारी करके जीवन यापन करता था।
उसके दोनों लडके बडे हो गये। उन दोनों लडकों की शादी दो खूबसूरत लडकियों से धूम-धाम से की। कुछ सालों के बाद लडकी की शादी भी एक बड़ी होटेल के मेनेजर से करवाया।
जब वह बूढ़ा हो गया तब अपने नौ एकड भूमि को अपने तीनों बच्चों को समान रूप से तीन – तीन . – तीन एकड देकर बाँट दिया।
उसके दोनों बेटों को यह अच्छा नहीं लगा। उनकी राय में स्त्री को पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। इसलिए वे अपनी बहिन और बाप को खूब कष्ट देने लगे।
विवश होकर लडकी ने अदालत में न्याय के लिए मुकद्दमा पेश किया तो अदालत में उसकी जीत हुई। भारत संविधान के अनुसार स्त्री – पुरुष बिना भेद – भाव पिता की संपत्ति के समान अधिकारी हैं। स्त्रियों को भी पुरुषों के साथ समान अधिकार प्राप्त हुए हैं।
शासन की दृष्टि में स्त्री – पुरुषों को समान अधिकार हैं। पिता और बहिन दोनों को कष्ट देने के कारण दोनों लडकों को पाँच – पाँच साल कारावास की सज़ा दी गयी।
नीति : अपने पिता की संपत्ति पर जितना अधिकार बेटों का है उतना ही अधिकार बेटियों का भी हैं।
2. कहानी के मुख्यांश
- संविधान के अनुसार स्त्री – पुरुषों के बीच में कोई भेदभाव नहीं। सब एक हैं।
- स्त्री – पुरुषों को समान रूप से पिता की संपत्ति पर अधिकार हैं।
- जब किसान बूढा हो गया तब उसने अपने तीनों संतान को समान रूप से तीन – तीन एकड़ की
- भूमि बाँट दी। लडकी ने न्याय के लिए अदालत में मुकद्दमा पेश किया।
- स्त्रियों को भी समान अधिकार प्राप्त हुए हैं।
- पिता और बहिन को कष्ट देने के कारण दोनों लडकों को पाँच – पाँच साल कारावास की सज़ा दी गयी।
3. मूल शब्द
समानता, अधिकार, भेद – भाव, खेतीबारी, अदालत, संपत्ति, स्त्री – पुरुष, कारावास, संविधान, सज़ा आदि।
4. चयनित शब्द
समानता, अधिकार, स्त्री – पुरुष, संविधान, सज़ा, भेद – भाव, अदालत, कारावास आदि।
छोटी सी कविता
स्त्रियों को भी हैं आज
समानता का अधिकार
स्त्री भी आगे बढ़ती
सभी क्षेत्रों में इन्हें पाकर।
भेदभाव के बिना सब
सम अधिकारों को पाकर
जिएँ जग में स्त्री – पुरुष
सभी मिल – जुलकर ||
5. संदेश या सार स्त्री को भी पुरुषों के साथ ही पिता की संपत्ति में (पर) समान अधिकार है। नारे
- आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक समानता व्यर्थ है।
- समानता का अधिकार – जनतंत्रता का आधार।
- स्त्री – देश की उन्नति का आधार।
- सामाजिक समानता उन्नति का सूचक है।
- स्त्री और पुरुष दोनों बराबर हैं।
ई) ‘नर समाज का भाग्य एक है, वह श्रम, वह भुजबल है।’ जीवन की सफलता का मार्ग श्रम है। अपने विचार व्यक्त कीजिए।
(या)
श्रामिक कण – कण का अधिकारी है। अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
- नर समाज का भाग्य एक है। वह श्रम है। वह भुजबल है।
- हमारे जीवन की सफलता का मार्ग भी श्रम ही है।
- श्रम के बल पर हम अपने जीवन को सुंदर बना सकते हैं।
- श्रम के बल पर ही हम खूब कमा कर अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं।
- श्रम करके हम दूसरों का भी पथ प्रदर्शन कर सकते हैं।
- श्रमिक जीवन ही सच्चा जीवन है।
- श्रम करनेवाले व्यक्तियों का सभी आदर करते हैं।
- श्रम करनेवाले के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
- श्रम के बल पर ही हम अपने भाग्य को और विजयों को भी हासिल कर सकते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि जीवन की सफलता का मार्ग श्रम है।
भाषा की बात
अ) कोष्टक में दी गयी सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।
प्रश्न 1.
जन, पृथ्वी, धन (एक – एक शब्द का वाक्य प्रयोग कीजिए और उसके पर्याय शब्द लिखिए।)
उत्तर:
वाक्य प्रयोग
जन – आम सभा में असंख्य जन उपस्थित हुए हैं।
पृथ्वी – भारत देश का पृथ्वी पर प्रमुख स्थान है।
धन – धन से ही सब कुछ होता नहीं है।
पर्याय शब्द
जन – लोग, जनता, प्रजा
पृथ्वी – भूमि, धरा, ज़मीन,
धन – संपत्ति, अर्थ, वित्त
प्रश्न 2.
पाप, सुख, भाग्य (एक – एक शब्द का विलोम शब्द लिखिए और उससे वाक्य प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:
विलोम शब्द
सुख × पुण्य
पाप × दुख
भाग्य × दुर्भाग्य।
वाक्य प्रयोग
पाप – पुण्य कार्य करने से हमें सद्गति मिलती है।
सुख – धैर्यवान कभी दुःख से नहीं डरता है।
भाग्य – साधारणतः हर व्यक्ति अपने भाग्य पर इठलाते हैं और दुर्भाग्य पर दुखित होते हैं।
प्रश्न 3.
जन – जन, कण – कण (पुनरुक्ति शब्दों से वाक्य प्रयोग कीजिए।)
उत्तर:
जन – जन – वर्षा के कारण जन – जन का मन हर्ष से भर गया है।
कण – कण – कण – कण का अधिकारी जन – जन है।
प्रश्न 4.
मज़दूर मेहनत करता है। (वाक्य का वचन बदलिए।)
उत्तर:
मज़दूर मेहनत करते हैं।
प्रश्न 5.
मनुष्य, मज़दूर (भाववाचक संज्ञा में बदलकर लिखिए।)
उत्तर:
मनुष्यता, मज़दूरी
आ) सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।
प्रश्न 1.
अधिकार – अधिकारी, भाग्य – भाग्यवान (अंतर बताइए।)
उत्तर:
- अधिकार का अर्थ है हक। यह भाववाचक संज्ञा है।
- अधिकारी का अर्थ है अधिकार को भोगनेवाला (हकदार)। ‘ई प्रत्यय जुडा है। विशेषण है।
- भाग्य का अर्थ है नसीब – यह भाववाचक संज्ञा शब्द है।
- भाग्यवान का अर्थ है नसीबवाला, भाग्यवादी ‘वान’ प्रत्यय जुडने से भाग्यवान बना। यह विशेषण शब्द है।
प्रश्न 2.
यद्यपि – पर्यावरण (संधि विच्छेद कीजिए।)
उत्तर:
यदि + अपि, परि + आवरण
प्रश्न 3.
अंम – जल, नभ – तल, भुजबल (समास पहचानिए।)
उत्तर:
- श्रम – जल → बहुव्रीहि समास
- नभ – तल → द्वन्द्व समास
- भुजबल → तत्पुरुष समास .
प्रश्न 4.
एक मनुज संचित करता है, अर्थ पाप के बल से, और भोगता उसे दूसरा, भाग्यवाद के छल से। (पद परिचय दीजिए।)
उत्तर:
एक – निश्चित संख्यावाचक विशेषण – पुंलिंग, एक वचन, मनुज का विशेष्य और – अव्यय, संयोजक, समुच्चय बोधक शब्द, दो वाक्यों को मिलाता है।
प्रश्न 5.
जिसने श्रम – जल दिया उसे पीछे मत रह जाने दो। (कारक पहचानिए।)
उत्तर:
ने, वह + को = उसे
इ) इन्हें समझिए। सूचना के अनुसार कीजिए।
प्रश्न 1.
जाने दो, पाने दो, बढ़ने दो (संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग समझिए।)
उत्तर:
- यहाँ जाने दो, पाने दो, बढ़ने दो का प्रयोग आज्ञानार्थक शब्दों के रूप में प्रयोग किया गया है।
- जाने दो, पाने दो, बढ़ने दो आदि शब्द संयुक्त क्रियाएँ हैं। जब दो क्रियाओं का संयोग होता हैं उन्हें संयुक्त क्रियाएँ कहते हैं।
- ये अनुमति बोधक (आज्ञाबोधक) शब्द हैं।
प्रश्न 2.
एक – पहला, प्रथम, दो – दूसरा, द्वितीय (अंतर समझिए।)
उत्तर:
- एक : पूर्णांक वाचक विशेषण है।
- पहला : क्रम वाचक विशेषण है।
- प्रथम : क्रम संख्यावाचक विशेषण है।
- दो : पूर्णांक वाचक विशेषण है।
- दूसरा : क्रम वाचक विशेषण है।
- द्वितीय : क्रम संख्यावाचक विशेषण है।
- एक, पहला, दो, दूसरा हिंदी के विशेषण शब्द हैं।
- प्रथम तथा द्वितीय संस्कृत के विशेषण शब्द हैं।
- एक और दो अंक के लिए प्रथम और द्वितीय श्रेणी के लिए और पहला, दूसरा स्थान के लिए प्रयोग । किया जाता है।
प्रश्न 3.
अभाग्य, दुर्भाग्य, सुभाग्य (उपसर्ग पहचानिए।)
उत्तर:
अभाग्य – अ
दुर्भाग्य – दुर
सुभाग्य – सु
प्रश्न 4.
प्राकृतिक, अधिकारी, भाग्यवान (प्रत्यय पहचानिए।)
उत्तर:
प्राकृतिक – इक
अधिकारी – ई
भाग्यवान – वान
प्रश्न 5.
पुरुष श्रमिक के रूप में मेहनत करते हैं। (लिंग बदलकर वाक्य लिखिए।)
उत्तर:
स्त्रियाँ श्रमिक के रूप में मेहनत करती हैं।
ई) नीचे दिया गया उदाहरण समझिए। उसके अनुसार दिये गये वाक्य बदलिए।
जैसे – जिसने श्रम – जल दिया उसे पीछे मत रह जाने दो।
श्रम जल देने वाले को पीछे मत रह जाने दो।
प्रश्न 1.
जो कुछ न्यस्त प्रकृति में है, वह मनुज मात्र का धन है।
उत्तर:
प्रकृति में न्यस्त धन मनुज मात्र का है।
प्रश्न 2.
जो मेहनत करता है वही कण – कण का अधिकारी है।
उत्तर:
मेहनत करनेवाला ही कण – कण का अधिकारी है।
प्रश्न 3.
जो परोपकार करता है वही परोपकारी कहलाता है।
उत्तर:
परोपकार करनेवाला ही परोपकारी कहलाता है।
परियोजना कार्य
विश्व श्रम दिवस (मई दिवस) के बारे में जानकारी इकट्ठा कीजिए। कक्षा में उसका प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर:
पहली मई का दिन समूचे विश्व में ‘मई दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। मई दिवस यानी मज़दूरों का दिन। काम करने वाले, खासकर श्रम से जुड़े लोगों के लिए तो यह एक वार्षिक पर्व है इसलिए इसे ‘श्रम दिवस’ तथा ‘मज़दूर दिवस’ भी कहा जाता है।
मई दिवस के आयोजन के पीछे मज़दूरों के लम्बे संघर्ष व आंदोलन और सफलता की लम्बी दास्तान है। यह कहानी 19 वीं सदी की है जब अमेरिका में मजदूरों पर गोलियाँ बरसाई गई थीं। तथा बड़ी संख्या में निर्दोष मज़दूर मारे गये थे और जब मज़दूरों की काम के निश्चित घंटों की मांग पूरी हुई थी तब से उसी संघर्ष और उन्हीं मजदूरों की शहादत की याद में पूरे विश्व में मई दिवस मनाया जाने लगा।
इस संघर्ष की शुरुआत 1838 में हुई थी । उन दिनों अमेरिका सहित तमाम यूरोपीय देशों में कारखानों में मज़दूरों के लिए काम का निश्चित समय निर्धारित नहीं था। मज़दूरों से इतना काम लिया जाता था कि अक्सर मजदूर बेहोश होकर गिर पड़ते थे। यदा – कदा उसके विरुद्ध आवाज़ भी उठी पर लगभग दो दशक तक कारखानों के मालिकों का यही रवैया रहा। इस कारण मज़दूरों का धैर्य धीरे – धीरे चुकने लगा तथा उन्होंने संगठित होकर शोषण के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू कर दी।
अमेरिका की नैशनल लेबर यूनियन ने अगस्त 1866 में अपना अधिवेशन में पहली बार यह माँग रखी कि मज़दूरों के लिए दिन में सिर्फ आठ घंटे काम के रखे जाएँ। यूनियन की इस घोषणा से मज़दूरों के संघर्ष को बल मिला। धीरे – धीरे अमेरिका सहित अन्य देशों में भी यह माँग जोर पकड़ने लगी।
1886 को 3 मई के दिन शिकागो शहर में लगभग 45000 मज़दूर एक साथ सड़कों पर निकल आए। पुलिस ने हल्की झड़प के फौरन बाद मज़दूरों पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी जिससे तत्काल 8 मज़दूर मारे गये और अनेक घायल हो गए। भीड़ में से किसी ने पुलिस पर बम फेंक दिया जिससे एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई तथा कुछ घायल हो गए। इससे पुलिस वालों का आक्रोश बढ़ गया और उन्होंने प्रदर्शनकारियों को गोलियों से छलनी कर दी। आंदोलनकारी नेताओं को उम्र भर की सज़ा दी गई और कुछ को फाँसी पर लटका दिया गया। लेकिन इतना कुछ होने पर भी यह आंदोलन और तेज़ होता गया।
14 जुलाई 1889 को अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी मज़दूर कांग्रेस की स्थापना हुई। इसी दिन इसने काम के 8 घंटे की माँग को दोहरा दिया। अपनी माँग जारी रखने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी मज़दूर कांग्रेस ने मई 1890 को विश्वभर में ‘मज़दूर दिवस’ मनाने का आह्वान दिया।
कण-कण का अधिकारी Summary in English
If one earns money and accumulates it by immoral and vicious ways, the other enjoys it on the name of fortune by deceiving him.
The fortune of the human society is nothing but toil i.e, hard work. This earth, the sky, and the abyss all of these will be modest to the hard work and salute it.
He who works hard should not be lagged behind. He alone should be allowed to have comforts in this triumphant nature.
What is available in this nature is nothing but the human being’s money. O Dharmaraja! The people are the masters of every particle of it. They who work hard alone have the right to enjoy it.
कण-कण का अधिकारी Summary in Telugu
ఒక మనిషి పాపము చేసి ధనమును సంపాదించి ప్రోగుచేస్తే దాన్ని మరొకడు అదృష్టము (భాగ్యవాదము) అనే ముసుగులో అనుభవిస్తున్నాడు.
శ్రమ, భుజబలమే మానవ సమాజ భాగ్యము (అదృష్టము). దాని ముందు భూమి, ఆకాశము కూడా తలవంచుతాయి. చెమటోడ్చి శ్రమపడేవారిని ఎన్నడూ నిరాశపరచకూడదు. (వెనకబడి ఉండనివ్వకూడదు) జయించబడిన ప్రకృతి నుండి ముందుగా వారినే సుఖాన్ని అనుభవించనివ్వాలి.
ఆ ప్రకృతిలో లభించే సంపద అంతా మానవునిదే. దాని అణువణువు మీద మానవునికే అధికారము ఉన్నది.
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
2 Marks Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो या तीन वाक्यों में लिखिए।
प्रश्न 1.
दिनकरजी ने श्रमिकों को सदा आगे रखने की बात क्यों कही है? लिखिए।
उत्तर:
यह प्रश्न ‘कण-कण का अधिकारी’ कविता पाठ से दिया गया है। इसके कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर हैं। मेहनत करनेवाला सदा आगे बढ़ता है। सफलता प्राप्त करता है। वह समाज का निर्माता होता है। वही अन्नदाता है। सुखदाता है। उसी से विकास होता है। इसलिए प्राप्त सुखों में मेहनत करनेवालों को भागीदारी बनाना चाहिए। क्योंकि दाता न रहे तो, हम भी नहीं।
प्रश्न 2.
कविवर रामधारी सिंह दिनकर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
डॉ. रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रसिद्ध कवियों में एक हैं। आपका जन्म सन् 1908 में बिहार के मुंगेर में हुआ। आप हिंदी के राष्ट्र कवि कहे जाते हैं।
रचनाएँ : उर्वशी, रेणुका, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, रसवंती आदि।
पुरस्कार : आपको उर्वशी काव्य ग्रंथ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
4 Marks Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह पंक्तियों में लिखिए।
प्रश्न 1.
समाज में मेहनत करने वालों को दिनकर जी ने अग्रस्थान क्यों दिया हैं?
उत्तर:
- समाज में मेहनत करनेवालों को दिनकर जी ने अग्रस्थान दिया हैं | क्योंकि
- मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
- मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नहीं हारता ।
- जो मेहनत करता है वह हमेशा सफल होता है ।
- काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला मेहनत करने वाला ही है ।
प्रश्न 2.
मेहनत करने से जीवन में क्या प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
- मेहनत करने से हम जीवन में सब कुछ पा सकते हैं |
- मेहनत सफलता की कुंजी है ।
- मेहनत करने वाला कभी भी नहीं हारता |
- भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी यही कहते हैं कि सपनों को साकार करने के लिए अधिक मेहनत करना है।
- मेहनत करने से हम जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं ।
- मेहनत के द्वारा ही हम अपने जीवन को बदल सकते हैं ।
- जीवन को सुखमय बनाने के लिए मेहनत करना ही है ।
- मेहनत करने से समाज का आदर भी हमें प्राप्त होता है ।
प्रश्न 3.
मेहनत करनेवाला कभी भी नहीं हारता – कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:
- मेहनत ही सफलता की कुंजी है | मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नहीं हारता |
- परिश्रम ता मेहनत करनेवाला हमेशा सफल होता है ।
- जो मेहनत करते हैं वे ही काल्पनिक जगत को साकार रूप देने वाले हैं ।
- हर कण के पीछे उसी का श्रम है।
- जो मेहनत करता है वही कण – कण का अधिकारी है।
- समाज ही नहीं पृथ्वी, विनीत नभ – तल भी मेहनत करने वाले के सामने झुकता है ।
- मेहनत करने वालों को ही पहले सुख पाने का अधिकार है ।
- उसे ही हर जगह आदर, सम्मान मिलता है।
इसलिए कवि दिनकर जी ने ऐसा कहा होगा कि मेहनत करनेवाला कभी भी नहीं हारता |
प्रश्न 4.
मनुष्य का धन श्रम और भुजबल है । कैसे?
उत्तर:
- मनुष्य का धन श्रम और भुजबल है ।
- श्रम और भुज – बल के सहारे ही मानव का जीवन यापन होता है ।
- श्रम करनेवाला कभी नहीं हारता | श्रम के सहारे ही मानव समाज में आदर पाता है |
- काल्पनिक जगत का साकार रूप श्रम के द्वारा ही होता है ।
- श्रम करनेवाला भाग्यवाद पर भरोसा न रखकर धन कमाता है ।
इसलिए हम कह सकते हैं कि मनुष्य का धन श्रम और भुजबल है |
प्रश्न 5.
मेहनत ही सफलता की कुंजी है । अपने विचार व्यक्त कीजिए ।
उत्तर:
- मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
- मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी भी नहीं हारता | मेहनत करनेवाला हमेशा सफल होता है ।
- काल्पनिक जगत को साकार रूप देने वाला मेहनत करने वाला ही है ।
- कण – कण के पीछे मेहनत करने वाले का ही श्रम निहित है ।
- जो श्रम करेगा वही कण – कण का अधिकारी है ।
प्रश्न 6.
जीवन की सफलता श्रम पर निर्भर है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
- जीवन की सफलता श्रम पर निर्भर है।
- जो सुखमय जीवन चाहता है वह श्रम ज़रूर करता है ।
- मेहनत ही सफलता की कुंजी है | श्रम और मेहनत करने वाला कभी नहीं हारता ।
- श्रम के सहारे ही हम जीवित रहते हैं।
- अपने – अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमारे जीवन में श्रम का ही सहारा लेना पडेगा |
- हम श्रम के सहारे अपने जीवन में काल्पनिक जगत को साकार रूप दे सकेंगे।
- श्रम करनेवाले भाग्यवाद पर विश्वास नहीं करते । अपने भुज – बल के द्वारा ही श्रम – जल देकर जीवन को सफल बनाते हैं।
प्रश्न 7.
दिनकर जी के अनुसार ‘काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला श्रमिक है’ – स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
- दिनकर जी के अनुसार ‘काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला श्रमिक ही है।
- यह कथन बहुत सच है | मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
- श्रमिक अपने श्रम के कारण कभी नहीं हारता | श्रमिक हमेशा सफल ही होता रहता है ।
- कण – कण के पीछे श्रमिक का ही श्रम है । श्रमिक ही कण – कण का अधिकारी है ।
- श्रमिक अपने श्रम द्वारा काल्पनिक जगत को साकार रूप देता है।
- श्रमिक भाग्यवाद पर विश्वास नहीं रखता ।
- नर – समाज का भाग्य श्रम, भुजबल ही है – यह श्रमिक का विश्वास है ।
प्रश्न 8.
डॉ. रामधारी सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं?
‘कण – कण का अधिकारी कविता के कवि के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
- डॉ. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिन्दी के प्रसिद्ध कवियों में से एक हैं।
- उनका जन्म सन् 1908 में बिहार के मुंगेर में हुआ तथा निधन सन् 1974 में हुआ।
- इन्हें हिन्दी का राष्ट्रकवि भी कहा जाता है।
- ‘उर्वशी’ कृति के लिए इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- रेणुका, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, रसवंती आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
8 Marks Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर आठ या दस पंक्तियों में लिखिए।
प्रश्न 1.
“कण – कण का अधिकारी” कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक का नाम : “कण – कण का अधिकारी” है।
कवि का नाम : “डॉ. रामधारी सिंह दिनकर” है। प्रस्तुत कविता में भीष्म पितामह, कुरुक्षेत्र युद्ध से विचलित धर्मराज को कार्यरत होने के लिए उपदेश देते हुए कहते हैं –
- हे धर्मराज ! एक मनुष्य पाप के बल से धन इकट्ठा करता है।
- दूसरा उसे भाग्यवाद के छल से भोगता है।
- मानव समाज का एक मात्र आधार या भाग्य “श्रम और भुजबल” है।
- श्रमिक के समाने पृथ्वी और आकाश दोनों झुक जाते हैं।
- जो परिश्रम करता है, उसे सुखों से कभी वंचित नहीं करना चाहिए।
- जो पसीना बहाकर श्रम करता है, उसी को पहले सुख पाने का अधिकार है।
- प्रकृति में जो भी वस्तु है, वह मानव मात्र की संपत्ति है।
- प्रकृति के कण-कण का अधिकारी जन – जन हैं।
प्रश्न 2.
मेहनत करनेवाला ही ‘कण-कण का अधिकारी’ है । पाठ के आधार पर अपने विचार बताइए ।
उत्तर:
शीर्षक का नाम : “कण – कण का अधिकारी है।
कवि का नाम : “डॉ. रामधारी सिंह दिनकर” है।
- मेहनत की सफलता की कुंजी है। मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नहीं हारता। वह हमेशा सफल होता है क्योंकि काल्पनिक जगत् को साकार रूप देने वाला वही है। इसके कण – कण के पीछे उसी का श्रम है। इसलिए वही कण – कण का अधिकारी है।
- कुछ लोग पाप करके धन कमाते हैं।
- उस धन को कुछ लोग “भाग्यवाद” की आड़ में भोगते हैं। नर समाज का भाग्य श्रम और भुजबल ही है।
- श्रमिक के सम्मुख भूमि और आकाश झुकते हैं।
- प्रकृति में छिपी संपदा ही मनुष्य का धन है।
- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मेहनत करनेवाला ही कण – कण का अधिकारी है।
प्रश्न 3.
‘कण – कण का अधिकारी’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
उत्तर:
श्रम और भुजबल ही मानव समाज का एक मात्र आधार है। भाग्य है। हमारे जीवन में, मानव समाज में श्रम का बड़ा महत्व है। जीवन में सफलता पाने के लिए श्रम करना अनिवार्य है। श्रम ऐसा प्रयास है जिससे असंभव कार्य को भी संभव में आसानी से बदला जा सकता है। हर प्रकार की प्रगति की जा सकती है। मानव समाज और देश को उन्नति के मार्ग में अग्रसर किया जा सकता है। श्रम करने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ (उच्च) स्थान पाता है। हम कह सकते हैं कि मेहनत ही सफलता की कुंजी है। श्रम करने वाला कभी भी जीवन में हारता (पराजित) नहीं है। न ही कभी निराश होता है।
सदैव आत्म विश्वास के साथ निरंतर श्रम करते हुए (सर्वोच्च) सर्वश्रेष्ठ स्थान को प्राप्त करता है। श्रम करने वाला ही काल्पनिक जगत को साकार रूप देने में सक्षम होता है। इसलिए जो श्रम करता है वही प्रकृति के हर एक कण का अधिकारी है। मनुष्य का महान गुण है श्रम करना। श्रम करने से यश, संपत्ति, जीवन यापन के लिए आवश्यक सुख – सुविधाएँ, इज्जत (आदर), गौरव, मान – सम्मान आदि प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति कार्य को पूर्ण करने के लिए श्रम करता है वही सुख पाने का सच्चा अधिकारी है। श्रम करनेवाला आस्था के साथ प्रगति पथ पर बढ़ता ही चला जाता है। यह भाग्य पर विश्वास न करके कर्म पर श्रम पर विश्वास करता है। श्रम करनेवाला हर कठिनाई को अपने परिश्रम से अपने अनुकूल बना लेता है।
इसलिए श्रम का बड़ा महत्व है। श्रम ही सफलता की कुंजी है। जिसके सम्मुख पृथ्वी भी झुक जाती है।
प्रश्न 4.
परिश्रम करनेवाले व्यक्ति को प्रकृति से पहले सुख पाने का अधिकार क्यों मिलना चाहिए ?
उत्तर:
मानव जीवन बहुत मूल्यवान है। श्रम करके सफलता प्राप्त करना मानव का जन्म सिद्ध गुण है। श्रम के आगे कोई असंभव नहीं है। इसलिए आरंभ से ही मानव कर्मरत हो सफलता प्राप्त कर रहा है। मेहनत करनेवालों से ही सब लोगों को आवश्यक चीजें सुविधाएँ मिल रही हैं। सृष्टि में अनेक आवश्यक और जीवनोपयोगी चीजें निक्षिप्त हैं। निस्वार्थ भाव से श्रम करनेवालों को ही प्रकृति वशीभूत होती है। अतः वे लोग ही महान और भाग्यवान होते हैं। वे ही आदर्शवान और महत्वपूर्ण हैं। ऐसे लोगों को सदा आगे रखने की बात कवि कह रहे हैं।
प्रश्न 5.
डॉ. रामधारीसिंह दिनकर ने ‘कण – कण का अधिकारी’ कविता के माध्यम से आज के समाज को क्या संदेश दिया है?
उत्तर:
‘कण – कण का अधिकारी’ नामक कविता के कवि हैं श्री रामधारी सिंह दिनकर | यह कविता कुरुक्षेत्र से ली गयी है । आप इस कविता में श्रम तथा श्रामिक के बडप्पन तथा महत्व के बारे में बताते हैं । कवि ने इस कविता में मज़दूरों के अधिकारों का वर्णन किया है । कवि कहते हैं कि मेहनत ही सफलता की कुंजी है । मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नहीं हारता वह हमेशा सफल होता है । सारा संसार उसे आदर भाव से देखता है । कवि कहते हैं कि एक मनुष्य अर्थ पाप के बल पर संचित करता है तो दूसरा भाग्यवाद के छल पर उसे भोगता है।
कवि कहते हैं कि नर समाज का भाग्य श्रम ही है । वह भुजबल है | श्रमिक के सम्मुख पृथ्वी और आकाश झुक जाते हैं । नतमस्तक हो जाते हैं।
कवि श्रम – जल देनेवाले को पीछे मत रहजाने को कहते हैं । वे कहते हैं कि विजीत प्रकृति से पहले श्रमिक को ही सुख पाने देना चाहिए | आखिर कवि बताते हैं कि इस प्रकृति में जो कुछ न्यस्त है वह मनुजमात्र का धन है । हे धर्मराज उस के कण – कण का अधिकार जन – जन हैं | मतलब यह है कि जो श्रम करेगा वही कण – कण का अधिकारी है।
संदेश : जो श्रम करेगा वही कण – कण का अधिकारी है।
प्रश्न 6.
श्रमिकों की उन्नति ही देश की उन्नति है । इस कथन पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर:
- श्रमिकों की उन्नति ही देश की उन्नति है । इसमें कोई संदेह नहीं है ।
- इसके कई कारण इस कथन का समर्थन कर सकते हैं।
- श्रमिक शक्ति के सहारे ही देश में वस्तुओं की उत्पत्ति होती है ।
- उन वस्तुओं को देश-विदेशों में बेचें तो विदेशी मारक द्रव्य आता है।
- विदेशी मारक द्रव्य से व्यक्तिगत आय बढ़ता है ।
- व्यक्तिगत आय बढने से जातीय आय भी बढता है ।
- देश की उन्नति में श्रामिकों का बडा हाथ है।
- इसलिए श्रमिकों की उन्नति के लिए सरकार को विविध कार्यक्रम चलाना चाहिए |
- श्रमिकों को ही पहले – पहल सुख पाने देना चाहिए ।
- श्रमिकों का देख-रेख, स्वास्थ्य आदि पर सरकार को ध्यान रखना चाहिए ।
- श्रमिक जो हैं वे काल्पनिक जगत को साकार करने वाले हैं ।
- श्रमिकों को अच्छे – से अच्छे वेतन देना है।
- श्रमिकों के बिना यह संसार में प्रगति अधूरी है । इसलिए हम कह सकते हैं कि श्रमिकों की उन्नति ही देश की उन्नति है । क्योंकि जिस देश में श्रमिक अच्छा जीवन बिताते हैं, उन्नति पाते हैं, उस देश की उन्नति होगी।
प्रश्न 7.
‘कण – कण का अधिकारी’ कविता से क्या संदेश मिलता है?
उत्तर:
कण – कण का अधिकारी कविता से हमें ये संदेश मिलते हैं –
- श्रम और भुजबल नर समाज का भाग्य है ।
- भाग्यवाद पर भरोसा मत रखना है ।
- मेहनत ही सफलता की कुंजी है । ।
- मेहनत करनेवाला कभी नहीं हारता |
- काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला श्रामिक ही है ।
- मेहनत करनेवाला ही कण – कण का अधिकारी है ।
- श्रम के सम्मुख पृथ्वी, विनीत नभ – तल झुकते हैं ।
- श्रम – जल देनेवाले को पहले सुख पाने देना चाहिए ।
प्रश्न 8.
हमारे समाज में परिश्रम करनेवालों का जीवन स्तर निम्न क्यों होता है?
उत्तर:
परिश्रम और भुजबल मानव समाज का एक मात्र आधार तथा भाग्य है। श्रम के सामने आसमान, पृथ्वी, सब आदर से झुक जाते हैं। श्रम से बढ़कर कोई मूल्यवान धन नहीं है। श्रम के द्वारा ही सारी संपत्ति, सुखसुविधाएँ संचित होती हैं। श्रम करने से किसी को अभाव की शंका नहीं रहती ।
एक मनुष्य के श्रम का फल दूसरा व्यक्ति अनुचित रूप से अर्जित करता है। भाग्यवाद के नाम पर पूँजीवादी उस श्रम धन को भोगता है। छल, कपट से पाप के बल से धन संचित करता है। शारीरिक श्रम न करना पूँजीवाद वाद की पहचान माना जाता है।
वास्तव में प्राकृतिक संपदा सब की है न कि कुछ ही लोगों की। श्रमिक ही प्राकृतिक संपदा का सर्व प्रथम अधिकारी है। लेकिन भाग्यवाद के बल पर पूँजीवादी श्रमिकों के श्रम का फल भोग रहे हैं। उनकी नजर में ये श्रमिक सिर्फ मेहनत करने के लिए पैदा हुए हैं। इसलिए यथा शक्ति श्रमिकों के अधिकार दूर करके उनको पीछे पड़े रहने की हालत पैदा करते हैं। नादान श्रमिक अपना भाग्य इतना ही समझकर उनके करतूतों की शिकार बन रहे हैं। अविद्या, ज्ञान की कमी से श्रमिक कष्ट झेल रहे हैं। इसी कारण से अपने अधिकार और सुख प्राप्त करने में वे पीछे रह जाते हैं। परिश्रम करनेवाले का स्तर हमारे मानव समाज में निम्न ही रह जाता है। श्रम करनेवाला कभी सुख सुविधाओं की ओर ध्यान देता ही कम है।
प्रश्न 9.
धर्मराज को भीष्म पितामह द्वारा दिये गये संदेश पर आज के समाज को दृष्टि में रखकर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
धर्मराज को भीष्म पितामह के द्वारा श्रम के महत्व के बारे में संदेश दिया गया है। आज के समाज़ को दृष्टि में रखकर इस पर मेरे ये विचार हैं –
- भाग्यवाद से कर्मवाद अच्छा है।
- नरसमाज का भाग्य केवल एक ही है – वह श्रम है। वह भुजबल है।
- भुजबल या श्रम – जल के सम्मुख पृथ्वी, विनीत नभ – तल झुकते हैं।
- श्रम के बल पर हम सब – कुछ हासिल कर सकते हैं।
- श्रम जल देनेवाले को पीछे मत रहने दो।
- विजीत प्रकृति से पहले उसे सुख पाने देना चाहिए।
- न्यस्त प्रकृति में जो कुछ है वह मनुज मात्र का धन है।
- कण – कण का अधिकारी श्रमिक ही है।
प्रश्न 10.
‘श्रमयेव जयते’ – इस कथन को दिनकर जी ने किस प्रकार समझाया?
उत्तर:
‘कण – कण का अधिकारी’ नामक कविता के कवि हैं श्री रामधारी सिंह दिनकर | यह कविता कुरुक्षेत्र से ली गयी है । आप इस कविता में श्रम तथा श्रामिक के बडप्पन तथा महत्व के बारे में बताते हैं । कवि ने इस कविता में मज़दूरों के अधिकारों का वर्णन किया है । कवि कहते हैं कि मेहनत ही सफलता की कुंजी है । मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नहीं हारता वह हमेशा सफल होता है । सारा संसार उसे आदर भाव से देखता है।
कवि कहते हैं कि एक मनुष्य अर्थ पाप के बल पर संचित करता है तो दूसरा भाग्यवाद के छल पर उसे भोगता है।
कवि कहते हैं कि नर समाज का भाग्य श्रम ही है । वह भुजबल है | श्रमिक के सम्मुख पृथ्वी और आकाश झुक जाते हैं । नतमस्तक हो जाते हैं ।
कवि श्रम – जल देनेवाले को पीछे मत रहजाने को कहते हैं । वे कहते हैं कि विजीत प्रकृति से पहले श्रमिक को ही सुख पाने देना चाहिए |
आखिर कवि बताते हैं कि इस प्रकृति में जो कुछ न्यस्त है वह मनुजमात्र का धन है । हे धर्मराज उस के कण – कण का अधिकार जन – जन हैं । मतलब यह है कि जो श्रम करेगा वही कण – कण का अधिकारी है।