AP State Board Syllabus AP SSC 10th Class Hindi Textbook Solutions निबंध लेखन Questions and Answers.
AP State Syllabus SSC 10th Class Hindi निबंध लेखन
1. समाचार पत्र
क) प्रस्तावना :
समाचार पत्र आधुनिक जीवन का अंग बन गया है। एक दिन भी समाचार पत्र न आए तो जीवन नीरस लगने लग जाता है। एक समाचार पत्र विविध विषयों पर ढेर सारी रोचक, ज्ञानवर्धक तथा लाभदायक सामग्री उपलब्ध करवाता है।
ख) समाचार पत्रों का प्रकाशन :
समाचार पत्र भी अपने आप में आश्चर्य की चीज़ है। देश विदेश की सारी खबरें कागज़ के कुछ पत्रों में सिमटकर सुबह होते ही आपके घर पहुँच जाएँ, यह कोई कम हैरानी की बात नहीं है। भारत में छपने वाली एक अंग्रेजी अखबार में साठ से लेकर सौ पन्नों वाली पुस्तक के बराबर सामग्री होती है। इतनी सारी सामग्री का एक दिन में ठीक और साफ़-सुथरा प्रकाशन कोई सरल कार्य नहीं है। यदि समाचार पत्रों के प्रकाशन का कार्य नियमित और सचारु न हो तो समाचार पत्रों का एक दिन की छोटी-सी अवधि में प्रकाशन असंभव हो जाए। सामग्री तो तैयार होती नहीं। उसे बाहर से प्राप्त करके संपादित और संकलित किया जाता है।
ग) विविध प्रकार के समाचार :
आप यह जानना चाहते हैं कि देश-विदेश में क्या घटा है तो आप समाचारों के संबंधित समाचार पत्र का पहला पृष्ठ पढ़ लीजिये। आपको राजनीति, युद्ध, व्यापार तथा खेलों से संबंधित खबरें सविस्तार मिल जाएँगी। खूबसूरत बात यह है कि ये समाचार पूर्ण ईमानदारी से प्रस्तुत किये जाते हैं। इन समाचारों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत नहीं किया जाता। आप राजनीति तथा अन्य सामाजिक विषयों पर संपादक अथवा दूसरे प्रसिद्ध पत्रकारों के विचार जानना चाहते हैं तो इनमें लेखों से संबंधित समाचार पत्र का पृष्ठ पढ़िए। कई लोग सुबह उठते ही अपनी राशि देखना चाहते हैं। लोगों की इस ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए समाचार पत्र में राशिफल छापते हैं। कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं और इसमें विश्वास नहीं करते।
घ) समाचार पत्र और विज्ञापन :
समाचार पत्र लोगों की एक आवश्यकता बन गयी है। अब अधिकतर शादी-विवाह समाचार पत्र के माध्यम से हो रहे हैं। दोनों कहीं न कहीं विद्यामान तो हैं किन्तु उनका परस्पर संपर्क नहीं हो रहा। समाचार पत्र उनमें मेल कराने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आप मकान बेचना चाहते हैं अथवा खरीदना या फिर किराये पर लेना चाहते हैं तो समाचार पत्र की सहायता लीजिए। यही, नहीं, समाचार पत्रों में शिक्षा, नौकरी और व्यापार से संबन्धित ढेर सारे विज्ञापन छपते हैं, जिन्हें देखकर बड़ी संख्या में लोग लाभान्वित होते हैं।
ङ) विशेष अतिरिक्त समाचार :
लगभग सभी समाचार पत्रों में रविवार वाले दिन अतिरिक्त सामग्री छपती है। इसे रविवारीय परिशिष्ट कहते हैं। इसमें कविता, कहानी, पहेली तथा अन्य रोचक सामग्री छपती है। इनमें बच्चों तथा स्त्रियों के लिए भी अलग से सामग्री होती है। गर्मियाँ शुरू हो गई हैं। आप तय नहीं कर पाये कि इस बार कौन-से पर्वत स्थल पर जाया जाए। आप को पता नहीं कि कौनसा स्थल अच्छा है और कहाँ-कहाँ पर्याटकों के लिए कौन – सी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इन सबकी जानकारी उन दिनों के समाचार पत्रों में अनिवार्य रूप से मिलेगी ही। आपको आध्यात्मिक सत्संग पर जाना है अथवा आपको फ़िल्म देखनी है अथवा कोई दूसरा मनोरंजन चाहिए, विस्तृतः जानकारी के लिए आप समाचार पत्र देखिए। समाचार पत्र दैनिक, मासिक, पाक्षिक तथा साप्ताहिक होते हैं। महानगरों में समाचार पत्र सायंकाल को भी निकलते हैं। इतनी ढेर सारी रोचक और उपयोगी सामग्री की कीमत पाँच से दस रुपये तक होती है। समाचार पत्र आधुनिक युग का वरदान है।
2. पशु सुरक्षा का महत्व
प्रस्तावना :
भगवान की सृष्टि में पशुओं का विशेष महत्व है। पशु – पक्षी ही प्रकृति की शोभा बढानेवाले हैं। समृद्धिदायक होते हैं। पशु के द्वारा ही मानव जीवन सुखी होता है। इस कारण पशु – सुरक्षा के महत्व पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
प्राचीन काल में गोधन या गायों का अत्यंत महत्व है। जिसके पास अधिक गायें होती हैं, वही अधिक धनवान या महान कहलाता है। तब घोडे, बैल, हाथी आदि जानवर सवारी का काम आते थे। अब ये काम यंत्रों की सहायता से संपन्न हो रहे हैं।
विषय विश्लेषण :
गाय, बकरी आदि कई पशु दूध देते हैं। दूध से मानव जीवन का पोषण होता है। दूध का मानव जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। इससे कई प्रकार के पदार्थ बनाते हैं। खासकर बचपन में सभी शिशुओं के लिए दूध की अत्यंत आवश्यकता है। दूसरा इनके गोबर से खाद बनती है। पैदावर अधिक होती है। अब भी बैल खेत जोतते हैं। मज़बूत बैलों से अच्छी खेती होती है। बैल गाडी खींचते हैं। किसानों का अनाज घर और बाज़ार पहुँचाते हैं। घोडे भी खेती के काम में आते हैं। घोडा गाडी खींचता है। उस पर सवारी करते हैं। बहुत से लोग कई पशुओं का मांस खाते हैं। चमडे से चप्पल और जूते बनाते हैं। कुछ जानवरों से ऊन मिलता है।
उपसंहार :
हमारे देश में गाय, बैल, बकरी, भेड, भैंस, घोडा, सुअर आदि पशुओं को पालते हैं। लेकिन उनके पालन – पोषण में अधिक श्रद्धा नहीं दिखाते हैं। उनको चाहिए कि पशु सुरक्षा के महत्व पर अधिक ध्यान दें। उनको पौष्टिक आहार दें। उनके रोगों की चिकित्सा करवाएँ। रहने, खाने – पीने आदि विषय में सफ़ाई का ध्यान दें। पहले से ही पशुओं की संतान पर अधिक ध्यान देने से मानव को बहुत लाभ होता है। इनसे खूब व्यापार होता है। सभी पशु मानव जीवन में अत्यंत उपयोगी हैं। वे मानव के मित्र कहलाते हैं।
3. प्रिय नेता
प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी विश्व की महानतम महिला थीं। इनका जन्म इलाहाबाद आनन्द भवन में 19 नवंबर सन् 1917 में हुआ था। उस समय इनके पिता पं. जवाहरलाल नेहरू महात्मा गाँधी के साथ देश के स्वतंत्रता संग्राम में संलग्न थे। आनंद भवन उन दिनों स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ बना हुआ था।
इन्दिरा जब नन्हीं सी थी तो देश के महान नेताओं की गोद में खेलने का अवसर उसे मिला। जब यह नन्हीं बालिका केवल चार वर्ष की थी तभी मेज़ पर खडे होकर अंग्रेजों के खिलाफ़ भाषण दी थी। जिसे भारत के बड़े -बड़े नेता सुन और हँसकर उस पर स्नेह की वर्षा बरसाई । इंदिरा का जन्म जब आनंद भवन में हुआ तो भारत कोकिल सरोजिनी नायुडू ने पं. जवहारलाल को एक बधाई संदेश भेजकर कहा था – “कमला की कोख से भारत की नयी आत्मा उत्पन्न हुई है।”
महात्मा गाँधी तथा देश के बड़े – बड़े नेताओं के सम्पर्क में आने से इंदिरा की राजनीति में गहरी पैठ होने लगी थी। स्वतंत्रता के समय इलाहाबाद में बच्चों की एक स्वयं सेवी संस्था बनी थी जिसका नाम वानर सेना रखा गया था। इस सेना के लगभग साठ हज़ार सदस्य थे। इंदिरा जब सात वर्ष की थी तभी वानर सेना की सदस्य बनी और बारह वर्ष की आयु में उसकी नेता चुनी गयी।
वानर सेना ने अंग्रेज़ सरकार की नाक में दम कर रखा था। इस सेना का काम जुलूस निकालना, इन्कलाब के नारे लगाना, काँग्रेस के नेताओं के संदेश जनता तक पहुँचाना और पोस्टर चिपकाना होता था।
स्वतंत्रता आंदोलन में नेहरू परिवार व्यस्त रहने के कारण इंदिरा की प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही होती रही। बाद में उन्हें स्विटजरलैंड तथा भारत में शान्तिनिकेतन में शिक्षा पाने का अवसर मिला। इंदिरा को आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में भी प्रवेश मिला था। किन्तु अस्वस्थता एवं दूसरा महायुद्ध शुरू हो जाने के कारण वहाँ की शिक्षा पूरी न हो सकी।
सन् 1942 में इंदिरा गाँधी का विवाह फिरोज़ गाँधी से हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण इन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और तेरह मास जेल की सज़ा हुई।
सन् 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ और काँग्रेस की सरकार बनी। पं. जवाहरलाल नेहरू प्रथम प्रधानमंत्री बने। सन् 1955 में आप काँग्रेस कार्यसमिति की सदस्य बनी और सन् 1959 में काँग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयी। 14 जनवरी 1966 को इंदिरा गाँधी ने भारत के प्रधानमंत्री का पद भार सँभाला। उसके बाद उन्होंने राष्ट्र की प्रगति के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये। जैसे – बैंकों का राष्ट्रीयकरण, रूस से संधि, पाकिस्तान से युद्ध, राजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति, बीस सूत्री कार्यक्रम आदि। भारत की प्रगति के लिए इंदिरा गाँधी ने रात – दिन कार्य किया।
भारत को प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से भारी आशाएँ थीं। परन्तु 31 अक्तूबर 1984 को प्रातः 9 बजकर 15 मिनट पर इनके ही दो सुरक्षाकर्मचारियों ने इनको गोलियों से छलनी कर दिया। उस दिन विश्वशांति और भारत की प्रगति के लिए सर्वस्व निछावर करनेवाली प्रधानमंत्री इदिरा गाँधी के निधन पर सारा संसार शोकमग्न हो गया।
4. हरियाली और सफ़ाई
प्रस्तावना :
मानव को जीने के लिये हरियाली और सफ़ाई की अत्यंत आवश्यकता है। हरियाली और सफ़ाई की उपेक्षा करने से मानव का जीवन दुःखमय तथा अस्वस्थ बन सकता है। मानव को स्वस्थ तथा आनंदमय जीवन बिताने के लिए इन दोनों की ओर ध्यान देना चहिए।
विषय विश्लेषण – हरियाली :
हरियाली मन को तथा आँखों को सुख पहुँचाती है। हरे-भरे खेत देखने से या हरेभरे पेड देखने से हम अपने आपको भूल जाते हैं। यह हरियाली देखने के लिए हमको कहीं भी जाना पडता है। मगर कुछ मेहनत करके हम यह हरियाली अपने आसपास भी पा सकते हैं। हम अपने चारों ओर कुछ पेड-पौधे लगाकर हरियाली बढा सकते हैं। पहले ही जो पेड-पौधे लग चुके हैं, उनको न काटना चाहिये। धरती को हमेशा हरा-भरा रखना है। यह हरियाली बढाने से हमको आक्सिजन मिलता है। हरियाली बढ़ाने का अर्थ होता है कि पेड-पौधों को बढाना। इससे इतने लाभ हैं कि हम बता नहीं सकते।
सफाई :
सफ़ाई का अर्थ होता है कि स्वच्छता।
सफ़ाई के बारे में सोचते वक्त हमको तन की सफ़ाई के बारे में, घर की सफ़ाई के बारे में तथा आसपास की सफ़ाई के बारे में भी सोचना चाहिए।
तन की सफ़ाई तो हमारे हाथों में है। घर की तथा आसपास की सफ़ाई का प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है। इसलिये हमें हमेशा घर की तथा आसपास के प्रदेशों को साफ़ रखना है। सफ़ाई का पालन करने के उपाय ये हैं
- सबसे पहले गन्दगी न फैलाएँ।
- फैली हुई गन्दगी को साफ़ करें।
- कूडा-कचरा जहाँ-तहाँ न फेंकें।
हमारे बुजुर्ग यह बताते हैं कि जहाँ सफ़ाई रहती है वहाँ लक्ष्मी का आगमन होता है।
उपसंहार :
इस प्रकार हम इन नियमों का पालन करने से अपनी आयु को बढ़ा सकते हैं।
एक नारा हमको मालूम ही है –
“वृक्षो रक्षति रक्षितः”
“घर की सफ़ाई, सबकी भलाई”।
5. आधुनिक विज्ञान की प्रगति
प्रस्तावना :
आज का युग विज्ञान का है। विज्ञान ने प्रकृति को जीत लिया है। मानव जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। दिन-ब-दिन विज्ञान में नये-नये आविष्कार हो रहे हैं। इनका सदुपयोग करने से मानव कल्याण होगा। दुर्विनियोग करने से बहुत नष्ट यानी मानव विनाश होगा।
विज्ञान से ये लाभ हैं –
- मोटर, रेल, जहाज़, हवाई जहाज़ मोबईल, फ़ोन, कम्प्यूटर आदि विज्ञान के वरदान हैं। इनकी सहायता से कुछ ही घंटों में सुदूर प्रांतों को जा सकते हैं।
- समाचार पत्र, रेडियो, टेलिविज़न आदि विज्ञान के आविष्कार हैं। ये लोगों को मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान प्रदान करते हैं।
- बिजली हमारे दैनिक जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। बिजली के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
- बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आवश्यक आहार पदार्थों की उत्पत्ति में सहायक है।
- नित्य जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायकारी है। लोगों के जीवन को सरल तथा सुगम बनाया है।
- रोगों को दूर करने के लिए कई प्रकार की दवाओं और अनेक प्रकार के उपकरणों का आविष्कार किया है।
- विज्ञान ने अंधों को आँख, बधिरों को कान और गूगों को ज़बान भी दी है।
विज्ञान से कई नष्ट भी हैं –
- विज्ञान ने अणुबम, उदजन बम, मेगटन बम आदि अणु अस्त्रों का आविष्कार किया। इनके कारण विश्व में युद्ध और अशांति का वातावरण है।
- मनुष्य आलसी, तार्किक और स्वार्थी बन गया है।
उपसंहार :
उसका सदुपयोग करेंगे तो वह कल्याणकारी ही होगा। आज दिन-ब-दिन, नये-नये आविष्कार हो रहे हैं। इनसे हमें अत्यंत लाभ है।
6. वृक्षारोपण
हमारी संस्कृति वन – प्रधान है। ऋवेद, जो हमारी सनातन शक्ति का मूल है, वन – देवियों की अर्चना करता है। मनुस्मृति में वृक्ष विच्छेदक को बड़ा पापी माना गया है। – “जो आदमी वृक्षों को नष्ट करता है, उसे दण्ड दिया जायें।” तालाबों, सड़कों या सीमा के पास के वृक्षों का काटना, गुरुतर अपराध था। उसके लिए दण्ड भी बड़ा कड़ा रहता था। उसमें कहा गया है कि जो वृक्षारोपण करता है, वह तीस हज़ार पितरों का उद्धार करता है। अग्निपुराण भी वृक्ष – पूजा पर ज़ोर देता है। वृक्षों का रोपण स्नेहपूर्वक और उनका पालन – पुत्रवत करना चाहिए।
पुत्र और तरु में भी भेद है, क्योंकि पुत्र को हम स्वार्थ के कारण जन्म देते हैं। परन्तु तरु – पुत्र को तो हम परमार्थ के लिए ही बनाते हैं। ऋषि – मुनियों की तरह हमें वृनों की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वृक्ष तो द्वेषवर्जित हैं। जो छेदन करते हैं, उन्हें भी वृक्ष छाया, पुष्प और फल देते हैं। इसीलिए जो विद्वान पुरुष हैं, उनको वृक्षों का रोपण करना चाहिए और उन्हें जल से सींचना चाहिए।
हम स्वर्ग की बातें क्या करें। हम वृक्षारोपण करके यहाँ ही स्वर्ग क्यों न बनायें। इतिहास में महान सम्राट अशोक ने कहा है – “रास्ते पर मैने वट – वृक्ष रोप दिये हैं, जिनसे मानवों और पशुओं को छाया मिल सकती है। आम्र वृक्षों के समूह भी लगा दिये।” आज प्रभुत्व सम्पन्न भारत ने इस महाराजर्षि के राज्य – चिह्न ले लिये हैं। 23 सौ वर्ष पूर्व उन्होंने देश में जैसी एकता स्थापित की थी, वैसी ही हमने भी प्राप्त कर ली है। क्या हम उनके इस सन्देश को नहीं सुनेंगे? हम सन्देश को सुनकर निश्चय ही ऐसा प्रबन्ध करेंगे, जिससे भारत के भावी प्रजा जन कह सकें कि हमने भी हर रास्ते पर वृक्ष लगाये थे, जो मानवों और पशुओं को छाया देते हैं।
हमारी संस्कृति में जो सुन्दरतम और सर्वश्रेष्ठ है, उसका उद्भव सरस्वती के तट के वनों में हुआ। नैमिषारण्य के वन में शौनक मुनि ने हमको महाभारत की कथा सुनायी – “महाभारत जो भारतीय आत्मशक्ति का स्रोत है। हमारे अनेक तपोवना में ही ऋषि – मुनि वास करते थे, आजीवन अपने संस्कार, आत्म – संयम और भावनाओं को सुदृढ बनाते थे।
हमारे जीवन का उत्साह वृन्दावन के साथ लिपटा हुआ है। वृन्दावन को हम कैसे भुला सकते हैं? वहीं कृष्ण भगवान ने यमुना – तट पर नर्तन करते हुए डालियों और पुष्पों के ताल के साथ अपनी वेणु बजायी। उनकी ध्वनि आज भी हमारे कानों में सुनायी देती है।
हमें पूर्वजों की ज्वलन्त संस्कृति मिली है, लेकिन हम उसके योग्य नहीं रहे। हम अपने वनों को काट डालते हैं। हम वृक्षों का आरोपण करना भूल गये। वृक्ष – पूजा का हमारे जीवन में स्थान नहीं रहा। हमारी स्त्रियों में से शकुन्तला की आत्मा चली गयी है। शकुन्तला वृक्षों को पानी दिये बिना आप पानी ग्रहण नहीं करती थी। आभूषण प्रिय होते हुए भी वह यह सोचकर पल्लवों को नहीं तोड़ती थीं कि इससे वृक्षों को दुःख होगा।
पार्वती ने देवदारु को पुत्र के समान समझकर, माँ के दूध के समान पानी पिलाकर बडा किया।
मंजरित वृक्षों का सौंदर्य हम नहीं भूल सकते। हम नहीं भूल सकते भव्य वृक्षों का अद्भुत गौरव, वृद्ध ऋषियों के समान जगत – कल्याण में ही जीवन – साफल्य समझने वाले बनों को। यदि प्रत्येक पुरुष और स्त्री वृक्षों के महत्व को समझे और पुत्रवत उनका परिपालन करे तो भारत का हर नगर हर गाँव जीवनोल्लास से ओत – प्रोत हो जाएगा।
7. स्वतंत्रता दिवस
प्रस्तावना :
भारत सैकड़ों वर्ष अंग्रेजों के अधीन में रहा। गाँधीजी, नेहरूजी, नेताजी, वल्लभ भाई पटेल आदि नेता अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े। उनके अथक परिश्रम से ता. 15 – 08 – 1947 को भारत आज़ाद हो गया। उस दिन सारे देश में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
विषय विश्लेषण :
नेहरूजी ने दिल्ली में लाल किले पर ता. 15-08-1947 को राष्ट्रीय झंडा फहराया। उन्होंने जाति को संदेश दिया। स्वतंत्रता समर में मरे हुए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उस दिन देश के सरकारी कार्यालयों, शिक्षा संस्थाओं और अन्य प्रमुख स्थानों में हमारा राष्ट्रीय झंडा फहराया गया। वंदेमातरम और जनगणमन गीत गाये। सभाओं का आयोजन किया गया । प्रमुख लोगों से भाषण दिये गये। इस तरह के कार्यक्रम आज तक हम मनाते आ रहे हैं। यह राष्ट्रीय त्यौहार है, क्योंकि इसमें पूरे देश के लोग अपने धर्म, अपनी जाति आदि को भूलकर आनंद के साथ भाग लेते हैं। हर साल अगस्त 15 को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। उपसंहार : हमारे स्कूल में स्वतंत्रता दिवस बडी धूमधाम से मनाया जाता है। हमारा स्कूल रंग – बिरंगे कागज़ों से सजाया जाता है। सुबह आठ बजे राष्ट्रीय झंडे की वंदना की जाती है। राष्ट्रीय गीत गाये जाते हैं। हमारे प्रधानाध्यापक स्वतंत्रता दिवस का महत्व बताते हैं। हम अपने नेताओं के त्याग की याद करते हैं। हम अपने राष्ट्रीय झंडे के गौरव की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग करने की प्रतिज्ञा लेते हैं।
8. कृत्रिम उपग्रह
प्रस्तावना (भूमिका) :
ग्रहों की परिक्रमा करने वाले आकाशीय पिंडों को उपग्रह कहते हैं। कृत्रिम उपग्रह तो मानव द्वारा बनाये गये ऐसे यंत्र हैं, जो धरती के चारों ओर निरंतर घूमते रहते हैं।
विषय विश्लेषण :
अंतरिक्ष के रहस्यों का अध्ययन करने के लिए सर्वप्रथम रूस ने 1957 में स्पुतनिक -1 कृत्रिम उपग्रह को अंतरिक्ष में छोडा था। भारत ने अपना पहला उपग्रह “आर्यभट्ट’ को 1975 में अंतरिक्ष में छोड़ा था। दूसरा भास्कर – 1 को 1979 को छोड़ा था। इसके बाद भारत ने रोहिणी, एप्पल और भास्कर – 2 को भी छोडा था। उन उपग्रहों को अंतरिक्ष में रॉकेटों की सहायता से भेजा जाता है। ये धरती की परिक्रमा करने लगते हैं। परिक्रमा करनेवाले मार्ग को उपग्रह की कक्षा कहते हैं। इन कृत्रिम उपग्रहों से हमें बहुत कुछ प्रगति करने का अवसर मिला। धरती एवं अंतरिक्ष के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है।
निष्कर्ष :
अनेक प्रकार की वैज्ञानिक खोजों के लिए कृत्रिम उपग्रहों का निर्माण किया गया। ये कई प्रकार के होते हैं। वैज्ञानिक उपग्रह, मौसमी उपग्रह, भू – प्रेक्षण उपग्रह, संचार उपग्रह आदि। वैज्ञानिक उपग्रह, वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए और रक्षा उपग्रह सैनिकों की रक्षा के लिए काम आते हैं। मौसम उपग्रह से मौसमी जानकारी प्राप्त करते हैं। भू – प्रेक्षण से भू संपदा, खनिज संपदा, वन, फसल, जल आदि की खोज होती है। संचार उपग्रहों से टेलिफ़ोन और टेलिविज़न संदेश भेजे जाते हैं और पाये जाते हैं। आजकल के सभी वैज्ञानिक विषय कृत्रिम – उपग्रहों पर आधारित होकर चल रहे हैं।
9. संस्कृति का महत्व
प्रस्तावना :
संस्कृति का अर्थ है नागरिकता या संस्कार किसी भी देश के आचार-विचार, रीति-रिवाज़, वेशभूषा, ललितकलाएँ, सामाजिक, धार्मिक, नैतिक विषयों का सम्मिलित रूप ही संस्कृति कहलाती है। संस्कृति का संबंध भूत, वर्तमान और भविष्य से होता है।
विषय विश्लेषण :
हर एक देश के लिए संस्कृति का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। भारतीय संस्कृति केवल आर्य या हिन्दू संस्कृति ही नहीं। वह महान संस्कृति है। हमारे भारत में अनेक धर्म और अनेक भाषाएँ हैं। अनेक देशों से आकर बसे हुए लोग हैं। वे अनेक प्रकार के लोग हैं। किन्तु भारतीय संस्कृति में एक बहुत बडी चीज़ है, जो अन्य देशों में बहुत कम पायी जाती है। भारतीय संस्कृति समन्वयात्मक है। वह सारे भारत की एक ही है। अखंड है। अविभाज्य है। इसमें विशाल धर्म-कुटुंब बनाने की क्षमता है। सूफ़ीमत, कबीर पंथ, ब्रह्मसमाज तथा आगरबानी संप्रदाय में भारत की संस्कृति का समन्वयात्मक रूप देख सकते हैं। अनेक संस्कृतियों को आत्मसात करने से भारतीय संस्कृति सबसे आगे है। यह बडी उदार संस्कृति है। अनेक संस्कृतियों को अपने में मिला लिया। मानवता का अन्तिम कल्याण ही भारतीय संस्कृति का आदर्श है। भिन्नत्व में एकत्व भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है।
उपसंहार :
भारतीय संस्कृति महान है। इससे ही दुनिया में शांति की स्थापना हो सकती है।
10.बकारा का समस्या
प्रस्तावना :
जब काम करनेवालों की अधिकता और काम की कमी होती है तब बेकारी की समस्या पैदा होती है। भारत पर सदियों तक विदेशी शासन के कारण यह समस्या बढ़ती गयी है।
विषय विश्लेषण :
शिक्षित व्यक्ति बेकारी में नाम लिख पाता है। उसे काम नहीं मिलता तो मन को बडा दुख होता है। उसे विरक्त होकर आत्महत्या करलेने का निर्णय लेने की नौबत आती है। काम-दिखाऊ कार्यालय में नाम लिखाने के बाद भी उसको कभी कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। इस कारण बेकारी की समस्या बढती चा रही है।
समस्याएँ :
अंग्रेज़ी शिक्षाप्रणाली में पढकर निकलनेवालों को नौकरी नहीं मिलती तो बेकार रह जाते हैं। शिक्षितों के लिए नौकरी के सिवा कोई दूसरा काम न आने के कारण ही यह बेकारी बढ़ती जाती है। इस प्रकार हम जान सकते हैं कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली और बेकारी के बीच गहरा संबंध है। ग्रामीण भी किसी कला-कुशलता के अभाव में नौकरी के लिए दौडने लगते हैं। इस तरह बेकारी बढ़ रही है और दूसरी ओर खेतों में काम करनेवालों की संख्या भी कम हो रही है। वैज्ञानिक प्रगति और मशीनों के प्रयोग की वृद्धि ने भी इस समस्या को बढादिया है। इन कारणों से अमीर करोडपति और सामान्य लोग गरीब बन रहे हैं।
कर्तव्य :
सरकार को कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देकर बेकारी को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। कृषि कार्य में स्पर्धा उत्पन्न करनी चाहिए। शिक्षा प्रणाली में सरलता, व्यावहारिकता और आध्यात्मिकता को स्थान देना चाहिए।
उपसंहार :
सरकार का कर्तव्य है कि ऊपर के सभी उपायों को काम में लायेंगे तो बेकारी की समस्या हल हो सकती है। समाज में सुख-शांति बढ़ सकती हैं।
11. रक्तदान का महत्व
भूमिका :
रक्त का अर्थ है खून या लहू। दान का अर्थ है दूसरों को देना। इसलिए रक्तदान का अर्थ हुआ खून को देना। दान कई तरह के होते हैं – जैसे अन्नदान, कन्यादान, श्रमदान, नेत्रदान आदि। इनमें रक्तदान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कारण यह है कि दिये हुए रक्त से एक घायल या रक्तहीन बीमार व्यक्ति को नया जीवन मिलता है। रक्तहीन आदमी का जीवन भाररूप होता है। इसलिए हम रक्तदान को सर्वश्रेष्ठ दान मानते हैं।
रक्तदान की आवश्यकता :
रक्तदान का महान उद्देश्य रक्तहीन आदमी को रक्त देकर उसे जिलाना है। आदमी को रक्त की ज़रूरत तब होती है जब वह किसी दुर्घटना में घायल होता है या उसे रक्तहीनता की बीमारी हो, जिसे ‘एनीमिया’ कहते हैं।
रक्तदान की प्रक्रिया :
रक्त देने का इच्छुक (Blood Donor) पहले किसी ‘रक्त बैंक में जाकर एक आवेदन – पत्र भरता है। उसमें यह अपने रक्त के वर्ग के बारे में बताता है और अपने परिवार का पूरा इतिहास भी देता है। यदि रक्त देनेवाला किसी रोग का रोगी हो या उसके परिवार में कोई भयंकर रोगी हो तो उसका रक्त नहीं लिया जाता। आजकल एइड्स (AIDS) की जाँच भी करते हैं। इन सभी जाँचों के बाद रक्त बैंकवाले उसे एक निश्चित तारीख पर उपस्थित होने को कहते हैं।
रक्तदान की प्रेरणा :
रक्तदान की आवश्यकता पर समाचार-पत्र, आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि माध्यमों के द्वारा खूब प्रचार किया जाता है। आजकल स्कूल-कॉलेज के युवक-युवतियाँ, लायन्स क्लब के सदस्य और राजनैतिक दलों के सदस्य रक्तदान के लिए “कैंपों” का संगठन करते हैं। इनमें हज़ारों की संख्या में लोग रक्तदान करते हैं।
उपसंहार :
रक्तदान सभी दानों में श्रेष्ठ है। रक्त दान न करने वाला आदमी देश के लिए भारस्वरूप होता है। उसका जीना और मरना दोनों बराबर है। इसलिए हम हज़ारों की संख्या में रक्तदान करें और ज़रूरत मंद रोगियों को मरण से बचायें।
12. ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा
प्रस्तावना :
इतिहास से संबद्ध प्राचीन इमारतें, भवन, किला, महल आदि को ऐतिहासिक स्थल कहते हैं। भारत एक सुविशाल और प्राचीन देश है। यहाँ कई ऐतिहासिक स्थल हैं। दिल्ली, आग्रा, जयपुर, हैदराबाद, बुद्ध गया आदि कई सैकड़ों स्थल भारत में हैं।
विषय :
ये सब हमारे देश के इतिहास के जीवंत प्रमाण हैं। इनके द्वारा उस समय के लोगों के भवन निर्माण कला का परिचय हमें होता है। प्राचीन काल के लोगों के औजार, वस्त्र और घर की सामग्री आदि के द्वारा हमारी संस्कृति का परिचय प्राप्त होता है। विजयवाडे के मोगलराजपुरम की गुहाएँ, अजंता, एलोरा की गुहाएँ आदि भी ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं।
विश्लेषण :
कुछ लोग ऐसे स्थलों से कीमती चीजें चुराकर अधिक पैसा कमाना चाहते हैं। इससे हमें नुकसान होता है। कुछ लोग इन जगहों को अनैतिक कार्य करने के लिए केन्द्र बनाते हैं। इससे वे नष्ट हो जायेंगे। इसलिए इनकी सुरक्षा करना चाहिए। हर नागरिक का कर्तव्य यह है कि – “इनकी सुरक्षा अपनी संपत्ति के जैसा करना चाहिए।” ये भूत और वर्तमान के लिए प्रमाण होंगे। भविष्य के लोग इनसे इतिहास का जानकारी रखते हैं।
13. सत्तर वर्षों के भारत स्वातंत्र्य स्वर्णोत्सव
भूमिका :
हमारा भारत सैकडों वर्ष अंग्रेज़ों के अधीन में रहने के बाद गाँधी, नेहरू, नेताजी, पटेल आदि नेताओं के त्याग फल से 15 – 8-1947 को आज़ाद हुआ।
विषय विश्लेषण :
अंक 15-08-1947 को आजादी प्राप्त होकर सत्तर वर्ष पूरा हो गया। इसके उपलक्ष्य में सारा भारत पुलकित होकर प्रजातंत्र पालन में सत्तरवाँ स्वातंत्र्य स्वर्ण महोत्सव मना रहा है। अगस्त 2019 को तिरहत्तर वर्ष बीत जायेंगे। इस कारण अगस्त 2018 से अगस्त 2019 तक ये उत्सव मनाये गये।
सारे भारत में ये स्वर्णोत्सव बड़े धूमधाम से मनाये गये। सभी तरह के लोगों ने, जातियों ने आपस में मिल – जुलकर मनाये हैं, सरकारी और सभी प्रकार के संस्थाओं ने, विद्यालय और सभी कार्यालयों ने उत्सव खूब मनाये हैं। अनेक कार्यक्रम का निर्वाह किया गया है। तिरहत्तर वर्षों में भारत ने जो प्रगति पायी है, सबका विवरण बताया गया है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ सभी विद्यालयों और महाविद्यालयों में विद्यार्थियों के बीच निबंध रचना और भाषण संबंधी सभाओं (होड) का निर्वाह करके प्रचार किया गया है। इस विषय में सभी जिलाओं ने और मंडलों ने प्रत्येक रूप से व्यवहार करके कार्यक्रमों को सफल बनाया है।
उपसंहार :
देश की अखंडता और स्वतंत्रता बनाये रखने की प्रतिज्ञा और कर्तव्य पालन यह उत्सव याद दिलाता है।
14. हम सब एक हैं।
प्रस्तावना :
भगवान ने सब प्राणियों को समान रूप से सृष्टि की है। कर्म के अनुसार जन्म प्राप्त होते रहते हैं। लेकिन सब प्राणियों में मानव जन्म सर्वोत्तम है। इसको बार – बार प्राप्त करना मुश्किल है। इसलिए इस जन्म में हमें जानना चाहिए कि हस सब एक है। सभी में परमात्मा है।
विषय विश्लेषण :
भूमंडल में अनेक देश हैं। अनेक प्रान्त हैं। अनेक लोग हैं। अनेक जातियाँ हैं। अनेक भाषाएँ हैं। संस्कृति, कलाएँ, सामाजिक, धार्मिक, नैतिक विषयों में भी फरक है। आचार – व्यवहार और रंग – बिरंगों में फरक है, फिर भी हम सब लोग एक है। भगवान ने सभी को समान रूप से सब कुछ दिया है। उसके पाने में हम में मत – भेद होते हैं, सभी मनुष्यों के तन, मन, खून और अंग एक ही प्रकार के हैं। लेकिन हमारी आदतों के कारण विविध रूप में दिखाई देते हैं। जिसमें परोपकार की भावना होती है, उसे सभी में परमात्मा दिखाई पडता है। वह सभी को एक ही मानता है, संपत्ति, शक्ति, बुद्धि, उदारता सभी भावनाओंवाले और सभी मत, सभी जाति के लोग एक ही है। जीवन मार्ग, धार्मिक मार्ग, अध्यात्मिक मार्ग और राजनैतिक मार्ग अनेक हैं। भाषाएँ अनेक हैं। रीतियाँ अनेक हैं। आकार अनेक हैं। लेकिन हम सब एक है।
उपसंहार :
सभी में एकता की भावना होती तो देश में सुख – शांति बढ़जाती है। हिंसा भाव छोड देते हैं।
15. पुस्तकालय
प्रस्तावना :
पढ़ने के लिए जिस स्थान पर पुस्तकों का संग्रह होता है, उसे पुस्तकालय कहते हैं। भारत में मुम्बई, कलकत्ता , चेन्नै, दिल्ली, हैदाराबाद आदि शहरों में अच्छे पुस्तकालय हैं। तंजाऊर का सरस्वती ग्रंथालय अत्यंत महत्व का है। मानव जीवन में पुस्तकालय का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
विषय विश्लेषण : पुस्तकालय चार प्रकार के हैं।
- व्यक्तिगत पुस्तकालय
- सार्वजनिक पुस्तकालय
- शिक्षा – संस्थाओं के पुस्तकालय
- चलते – फिरते पुस्तकालय
पुस्तकों को पढ़ने की रुचि तथा खरीदने की शक्ति रखनेवाले व्यक्तिगत पुस्तकालयों का संचालन करते हैं। इतिहास, पुराण, नाटक, कहानी, उपन्यास, जीवनचरित्र आदि सभी तरह के ग्रंथ सार्वजनिक पुस्तकालयों में मिलते हैं। इनमें सभी लोग अपनी पसंद की पुस्तकें पढ़ सकते हैं। नियत शुल्क देकर सदस्य होने पर पुस्तकें घर ले जा सकते हैं। शिक्षा संस्थाओं के पुस्तकालयों से केवल तत्संबंधी विद्यार्थी ही लाभ पा सकते हैं। देहातों तथा शहरों के विभिन्न प्रांतों के लोगों को पुस्तकें पहुँचाने में चलते – फिरते पुस्तकालय बहुत सहायक हैं। इनके नियमित रूप से पढ़ने से मनोरंजन के साथ – साथ ज्ञान – विज्ञान की भी वृद्धि होती है।
पुस्तकें पढ़ने से ये लाभ हैं :
इनके नियमित रूप से पढ़ने से मनोरंजन के साथ – साथ ज्ञान – विज्ञान की भी वृद्धि होती है।
- अशिक्षा दूर होती है।
- बुद्धि का विकास होता है।
- कुभावनाएँ दूर होती हैं।
विभिन्न देशों की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों का परिचय मिलता है।
उपसंहार :
पुस्तकालय हमारा सच्चा मित्र है। इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। इसलिए पुस्तकों को गंदा करना, पन्ने फाडना नहीं चाहिए। अच्छी पुस्तकें सच्चे मित्र के समान हमारे जीवन भर काम आती है। ये सच्चे गुरु की तरह ज्ञान और मोक्ष दायक भी हैं।
16. विद्यार्थी जीवन
प्रस्तावना :
विद्यार्थी का अर्थ है विद्या सीखनेवाला। इसलिए विद्यार्थी अवस्था में विद्या सीखते जीवन बिताना या । ज्ञानार्जन करना उसका परम कर्तव्य है। उत्तम विद्यार्थी ही आदर्श विद्यार्थी कहलाता है।
विषय विश्लेषण :
जो बालक विद्या का आर्जन करता है उसे विद्यार्थी कहते हैं। हर विद्यार्थी को महान व्यक्तियों से अच्छी बातों को सीखना चाहिये। तब वह आदर्श विद्यार्थी बन सकता है। आदर्श विद्यार्थी को अपने हृदय में सेवा का भाव रखना चाहिए। उसको अच्छे गुणों को लेना चाहिए। उसको विनम्र और आज्ञाकारी बनना चाहिये। उसे शांत चित्त से अपने गुरु के उपदेशों को सुनना चाहिये। उसको स्वावलंबी बनना चाहिये। उसको अपने कर्तव्य को निभाना चाहिये। उसको समाज और देश का उपकार करना चाहिये। उसको महापुरुषों की जीवनियों से प्रेरणा लेनी चाहिये। उसको समय का सदुपयोग करना चाहिये। आदर्श विद्यार्थी को सदाचारी बनना चाहिये।
उपसंहार :
विद्यार्थी दुष्ट लोगों को पकड़ने में सरकार की सहायता कर सकते हैं। भारत स्काउट, जूनियर रेडक्रास आदि संस्थाओं में वे भाग ले सकते हैं। उनका धर्म है कि वे हमेशा मानव की सेवा करते रहे। अपने देश की सच्ची सेवा भी करनी है। मानव जीवन में विद्यार्थी जीवन ही अत्यंत महत्तर और आनंददायक जीवन है। अच्छी पुस्तकें पढनी चाहिए, जिससे चरित्रवान बन सकते हैं। आज का आदर्श विद्यार्थी ही कल का आदर्श नेता, अच्छा नागरिक बन जाता है। इस कारण देश और समाज के लिए आदर्श विद्यार्थियों की अत्यंत आवश्यकता है। हर एक विद्यार्थी को आदर्श विद्यार्थी बनने की आवश्यकता है।
17. संक्रांति (पोंगल)
प्रस्तावना :
संक्रांति भारत का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। संक्रांति को ही दक्षिण भारत के लोग “पोंगल” कहते हैं। इस त्यौहार का संबंध सूर्य भगवान से है। सूर्य भगवान इस दिन दक्षिणायन से उत्तरायन को चलता है। इस कारण इसको ‘उत्तरायन’ भी कहते हैं। यह त्यौहार हर साल जनवरी 13, 14, तारीखों में आता है।
विषय :
सूर्य भगवान की कृपा से खूब फसलें होती हैं। इसलिए कृतज्ञ किसान नयी फसल से सूर्य भगवान को पोंगल बनाकर पोंगल के दिन भेंट चढ़ाते हैं। बन्धु मित्रों से मिलकर खुशी मनाते हैं।
यह त्यौहार तीन दिन मनाया जाता है। पहले दिन को भोगी कहते हैं। दूसरे दिन को संक्रांति मनाते हैं और तीसरे दिन को कनुमा कहते हैं। त्यौहार के सिलसिले में सभी रिश्तेदार अपने घर आते हैं। सिर स्नान करके नये कपडे पहनते हैं। तरह – तरह के पकवान बनाकर खाते हैं। मिष्ठान्न खाते हैं। आंध्र के लोगों के विशेष पकवान जैसे हल्दी भात, दही भात, बोब्बट्लू, आवडा आदि बनाते और खाते हैं।
इस त्यौहार की तैयारी एक महीने के पहले से ही होती है। घर और मकान साफ़ किये जाते हैं। दीवार पर चूना पोता जाता है।
उपसंहार :
त्यौहार के समय किसान लोग बैलों की, गायों की पूजा करते हैं। गाँव – गाँव में कोलाहल मच जाता है। मुर्गों की होड, भेडों की भिडाई आदि होते हैं। सब लोग आनंद – प्रमोद के साथ त्यौहार मनाते हैं। इसे ‘पेद्द पंडुगा” भी कहते हैं। आंध्रा के लोगों के लिए यह एक खास त्यौहार है।
18. जनसंख्या की समस्या
भारतवर्ष की सबसे बड़ी समस्या है – जनसंख्या -वृद्धि | भारत की आबादी 120 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या का पहला कारण है – अनपढ़ता | दूसरा कारण है – अंधविश्वास। अधिकतर लोग बच्चों को भगवान की देन मानते हैं। इसलिए वे परिवार नियोजन को अपनाना नहीं चाहते। लड़का- लड़की में भेदभाव करने से भी जनसंख्या बढ़ती है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण पर्यावरण – प्रदूषण की गंभीर समस्या आज हमारे सामने खड़ी है। कृषि-योग्य भूमि का क्षम हो रहा है। वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही हैं। बेकारी बढ़ रही है। परिणाम स्वरूप लूट, हत्या, अपहरण जैसी वारदातें बढ़ रही हैं। लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिल रहा। जनसंख्या- नियंत्रण के लिए सरकार को चाहिए कि वह परिवार – नियोजन कार्यक्रम को गति दे । सरकार को चाहिए कि इस दिशा में कठोरता से नियम लागू करे अन्यथा आने वाली पीढ़ी को भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है।
19. नदियों से लाभ
भूमिका :
सब प्राणियों के लिए पानी की अत्यंत आवश्यकता है। बिना पानी के कोई जीवित नहीं रह सकता। केवल पीने के लिए ही नहीं मानव के हर एक काम के लिए पानी की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए पानी का अत्यंत महत्व है।
विषय विश्लेषण :
खूब वर्षा होने पर बाढ़ आती है। साधारणतः नदियाँ पहाडों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं। नदियों से कई प्रयोजन हैं। नदी जहाँ ऊँचे प्रदेश से गिरती है, वहाँ जल प्राप्त का निर्माण होता है। बाँध बनाकर पानी को इकट्ठा करके खेतों की सिंचाई करते हैं। वहाँ बिजली उत्पन्न की जाती है। नहरों के द्वारा सभी प्रांतों को पानी पहुँचाया जाता है। नदियों में नावें चलती हैं, जिससे व्यापार होता है। इनमें मछलियाँ मिलती हैं। इनको बहुत लोग खाते हैं। नदी का पानी सब लोग पीते हैं। इसमें स्नान करते हैं। कपडे धोते हैं। गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि भारत की प्रमुख और पवित्र नदियाँ हैं। सभी नदियों पर बाँध बनवाकर करोडों एकड ज़मीन खेती के काम में लायी गयी है। भारतीय लोग नदियों की पूजा करते हैं। नदियाँ ही सृष्टि में प्रमुख स्थान रखती हैं। सभी प्राणियों और जड – चेतन के लिए आधार – मात्र है।
उपसंहार :
नदियाँ केवल मानव के लिए ही उपयोग नहीं, सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए जीवनाधार है।
20. हिन्दी दिवस
प्रस्तावना :
भारत हमारा एक विशाल और महान देश है। यहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। ऐसी हालत में जन साधारण को आपस में कार्य करने और एक दूसरे को समझने एक शक्तिशाली भाषा की आवश्यकता है। देश । के अधिकांश लोगों से बोली जानेवाली और समृद्ध साहित्यवाली आसान भाषा ही राष्ट्र भाषा बन सकती है। हिन्दी में ये सभी गुण विद्यमान हैं। ख़ासकर हिन्दी साहित्य का करीब एक हज़ार वर्ष का इतिहास है। सूरदास, तुलसी, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि महान साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से हिन्दी को समृद्ध किया है।
महत्व :
स्वतंत्र भारत की राष्ट्र भाषा बनने का सौभाग्य हिन्दी को मिला है। यह जनता की सेविका है। सारी जनता को एक सूत्र में बांधने की शक्ति रखती है। सन् 14 सितंबर 1949 हिन्दी को राष्ट्रभाषा का पद दिया गया हैं। तब से हिन्दी प्रचार के विषय में केंद्रीय और प्रांतीय सरकार दोनों अधिक कार्यरत हैं। हिन्दी एक सजीव भाषा है। इस पर अन्य कई भाषाओं का गहरा प्रभाव है। खासकर स्वतंत्रता संग्राम के वक्त समूल भारत जाति को एकत्रित करने में हिन्दी का सशक्त योगदान प्रशंसनीय रहा ।
भारत में हर साल सितंबर 14 को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। विद्यालयों में हिन्दी दिवस के सिलसिले में गीत, नाटक, निबंध आदि भाषा संबंधी प्रतियोगिताएँ संपन्न की जाती हैं। प्रतियोगिताओं में प्रतिभा दिखानेवाले छात्रों को पुरस्कार दिये जाते हैं। खासकर हिन्दी भाषा की मधुरता का आनंद लेते हैं। हम प्रण करते हैं कि शक्ति भर राष्ट्र भाषा के प्रचार व प्रसार में अपना हाथ बँटाएँगे।
उपसंहार :
सभी भारतीय भाषाओं में हिन्दी का महत्व अधिक है। ऐसी महान भाषा की उन्नति और प्रचार में सबको अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
21. अगर मैं पंछी होता, तो …..
प्रस्तावना :
ईश्वर की बनायी इस अद्वितीय सृष्टि में पंछी भी एक उत्तम प्राणी है। पंछी को ही हम पक्षी, विहंग कहते हैं। पंछी परमात्मा का प्रतीक है। पंछी आत्मा का स्वरूप भी माना जाता है। उपनिषदों में आत्मा और परमात्मा दोनों को भी पक्षी के स्वरूप माना गया।
विषय विश्लेषण :
पंछी (पक्षी) स्वेच्छा से उड़नेवाला निर्बाध प्राणी है। आत्मनिर्भरता का यह सच्चा प्रतीक है। यह सदा उपकारी ही रहा है। प्रकृति में अनेक प्रकार के पंछी पाये जाते हैं। हर पंछी अपना विशेष महत्व रखता है। चाहे कितना भी कष्ट या नष्ट का सामना करना पडे वह कभी विचलित नहीं होता। धैर्य के साथ जीवन यापन करता रहता है। सदा संतुष्ट रहनेवाला आदर्श प्राणी है।
महत्व :
आत्मनिर्भर पंछी का जीवन मेरे लिए आदर्शमय है। अगर मैं पंछी होता तो उसी की तरह अपना एक मकान (घोंसला) खुद बना लेता और परिवार की रक्षा करते जी जान लगाकर पालन – पोषण करता। परिवार के सदस्यों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करते उनमें उत्तम गुणों को पनपने का सफल प्रयत्न करता। किसी अत्याचारी या दुराचारी को मैं अपने या अपने परिवारवालों की ओर ताकने नहीं देता। मानव समाज की तरह धान्य, संपत्ति आदि छिपाने की ज़रूरत नहीं होती। झूठ बोलने की, स्वार्थ से किसी को धोखा देने की, हानि करने की बात ही न उठती। अपने और अपने परिवार के सदस्यों के पेट भरने दूर – दूर प्रांतों में जाकर दाना – दान ले आता। सदा सब की सहायता करने में तन मन लगा देता। ऐसा करके अपना जीवन सार्थक बना लेता।
उपसंहार :
अगर मैं पंछी होता तो मेरे परिवार को रक्षा करूँगा। फंसल उगाने में किसनों को मदद करूँगा।
22. “मानव सभ्यता के विकास में कम्प्यूटर का महत्त्व”..
प्रस्तावना :
यह विज्ञान का युग है। कुछ वर्ष पहले संसार के सामने एक नया आविष्कार आया उसे अंग्रेज़ी में कम्प्यूटर और हिन्दी में संगणक कहते हैं।
भूमिका (लाभ) :
आज के युग को हम कम्प्यूटर युग कह सकते हैं। आजकल हर क्षेत्र में इसका ज़ोरदार उपयोग और प्रयोग हो रहा है। चाहे व्यापारिक क्षेत्र हो, राजनैतिक क्षेत्र हो, यहाँ तक कि विद्या, वैद्य और संशोधन के क्षेत्र में भी ये बडे सहायकारी हो गये हैं। इसे हिन्दी में “संगणक” कहते हैं। गणना, गुणना आदि यह आसानी से कर सकता है। मनुष्य की बौद्धिक शक्ति की बचत के लिए इसका निर्माण हुआ है। आधुनिक कम्प्यूटर के निर्माण में चार्लस बाबेज और डॉ. होवर्ड एकन का नाम मशहूर हैं।
विषय प्रवेश :
परीक्षा पत्र तैयार करना, उनकी जाँच करना – इसके सहारे आजकल पूरा किया जा रहा है। जिस काम के लिए सैकड़ों लोग काम करते हैं, उस काम को यह अकेला कर सकता है। हम जिस समस्या का परिष्कार नहीं कर पाते हैं, उसे यह आसानी से सुलझा सकता है।
विश्लेषण :
चिकित्सा के क्षेत्र में भी इसका उपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। इसके द्वारा यह सिद्ध हो गया कि – ” सब तरह के काम यह कर सकता है।”
उपसंहार :
इसकी प्रगति दिन – ब – दिन हो रही है। रॉकेटों के प्रयोग, खगोल के अनुसंधान में इसके ज़रिये कई प्रयोग हो रहे हैं। यह वैज्ञानिकों के लिए एक वरदान है। हर छात्र को इसका प्रयोग करना सीखना है। इसके द्वारा देश की अभिवृद्धि अवश्य हो सकती है। लेकिन बेरोज़गारी बढ़ने की संभावना है।
23. किसी त्यौहार का वर्णन
भूमिका :
दीवाली हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। मेरा प्रिय त्यौहार दीवाली है। बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष, धनिकगरीब सबके लिए यह प्रिय त्यौहार है। यह पर्व आश्विन अमावस्या को मनाया जाता है।
दीवाली का अर्थ होता है दीपों की पंक्ति। यह वास्तव में पाँच त्यौहारों का समूह – रूप है।
विषय :
नरक चतुर्दशी के बारे में एक कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस रहता था। वह बडा दुष्ट था। वह लोगों को बहुत सताता था। लोगों में त्राहि-त्राहि मच गयी। लोगों की प्रार्थना सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने सत्यभामा के साथ नरकासुर पर आक्रमण किया। सत्यभामा ने नरकासुर को मार डाला। इस पर लोगों ने दीप जलाकर अपनी खुशियाँ प्रकट की।
विश्लेषण :
दीवाली के संबंध में अनेक कथाएँ हैं। एक कथा इस प्रकार है – “रावण-वध के बाद जब राम अयोध्या लौटे तो पुरजनों ने उनके स्वागत में दीवाली का आयोजन किया”। यह बड़ा आनंददायक पर्व है। दीवाली के दिन लोग तडकें उठते हैं। अभ्यंगन स्नान करके नये कपडे पहनते हैं। शाम को दीपों की पूजा और लक्ष्मी की पूजा करते हैं। बच्चे पटाखें, फुलझडियाँ आदि जलाते हैं। लोग मिठाइयाँ खाते हैं। मारवाडी लोग इस दिन से नये साल का आरंभ मानते हैं। हिन्दु लोग लक्ष्मी की पूजा करते हैं। सभी मंदिर जाते हैं। खासकर व्यापारी लोग अपने पुराने हिसाब ठीक करके नये हिसाब शुरू करते हैं। यह खासकर हिन्दुओं का त्यौहार है। सफ़ाई का त्यौहार है। अन्धकार पर प्रकाश और पाप पर पुण्य की विजय साधना का त्यौहार है।
उपसंहार :
यह त्यौहार भारत भर में मनाया जाता है। खासकर यह बच्चों का त्यौहार है। बच्चों के आनंद का ठिकाना नहीं होता है। दीवाली के दिन सर्वत्र प्रसन्नता ही प्रसन्नता दिखाई देती है।
24. स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता की ज़रूरत है
क) भूमिका
ख) सफ़ाई का महत्व
ग) सार्वजनिक स्थलों की सफाई
घ) उपसंहार
क) भूमिका :
मैं एक दिन टहलने निकला था, मैंने देखा कि एक सज्जन रास्ते पर पान थूक रहे थे। एक अन्य सज्जन ने अपनी आधी सिगरेट बुझाकर रास्ते पर फेंक दी थी। कुछ ऐसे लोग भी देखे जो भेल, चाट, चुडवा, आदि खाकर जूठे दाने और गंदे कागज़ इधर-उधर फेंक रहे थे। इससे मुझे काफ़ी खेद हुआ, और मेरा मन भी काफ़ी दुखी हुआ। मैं सोचने लगा कि लोगों की यह आदत पता नहीं कब जायेगी।
ख) सफ़ाई का महत्व :
हमारा अनुभव है कि, अपने कपडे साफ़ हो और शरीर स्वच्छ हो तो मन अत्यंत प्रसन्न रहता है। स्वच्छता से ही पवित्रता रखी जा सकती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को यथा संभव हर जगह स्वच्छता रखनी चाहिए। इससे हमारा स्वास्थ्य बना रहता है। घर का कचरा और सडकों तथा गलियों की गंदगी देखकर मन खराब हो जाता है। साफ़ मकान में रहने और साफ़ – सुथरी सडकों पर चलने से हमारा स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है और मन भी प्रफुल्लित रहता है। सचमुच स्वच्छता से ही जीवन सुखी बन सकता है।
ग) सार्वजनिक स्थलों की सफाई :
प्रायः घर का कचरा बाहर फेंककर लोग निश्चिन्त हो जाते हैं। यह बहुत अनुचित बात है। सडक बगीचे समुद्र तट, प्राणी – संग्रहालय, रेलवे स्टेशन आदि प्रत्येक सार्वजनिक स्थल पर स्वच्छता रखना अनिवार्य है। इससे जल और वायु दोनों प्रदूषित नहीं होते हैं। अपने गाँव और शहर को स्वच्छ रखने में हर व्यक्ति को अपना सहयोग देना चाहिए।
घ) उपसंहार :
इधर- उधर कचरा फेंकने वाले लोग भले नागरिक नहीं कहे जा सकते। कचरा फेंकने के लिए जगह-जगह पर डिब्बे रखे जायें तो लोग डिब्बों में ही कचरा फेंकने की आदत डालेंगे। सफ़ाई का जितना महत्व है, उतनी ही सफ़ाई रखने के तरीकों की शिक्षा भी ज़रूरी है। बच्चों को बचपन से ही सफ़ाई के पाठ सिखाने चाहिए। इससे पानी से, वायु से फैलने वाली बीमारियाँ नहीं फैलेंगी।
25. यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो …..
प्रस्तावना :
प्रधानमंत्री का पद एक साधारण पद नहीं है। यह देश का शासन चलाने का प्रधान और मुख्य पद है। लोकसभा में बहुमत प्राप्त पार्टी का नेता हमारे देश का प्रधानमंत्री बनता है।
उद्देश्य :
यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो उस पद के द्वारा देश और समाज का काया पलट देना चाहूँगा। मेरे सामने कई सपने हैं। उनके लिए एक प्रणाली तैयार करके, उसके अनुसार काम करते हुए, समाज में उन्नति लाऊँगा। विषय : आज हमारे देश में भाषा भेद, जाति भेद, वर्ग भेद, प्रान्त भेद आदि फैल रहे हैं। पहले इनको दूर करके सबके दिलों में “भारत एक है” – इस भावना को जगाने की कोशिश करूँगा। देश को आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से आगे ले जाने की कोशिश करूँगा।
किसानों को साक्षर बनाऊँगा। उन्हें सस्ते दामों में बीज, उपकरण आदि पहुँचाऊँगा। सहकारी समितियाँ बनाकर, उनसे कम सूद में ऋण प्राप्त करने की व्यवस्था करूँगा। अनेक मिल, कारखानों का निर्माण करके, जो बेरोज़गारी हैं, उसे दूर करने का प्रयत्न करूँगा।
स्कूलों, कॉलेजों और विश्व विद्यालयों की संख्या बढ़ाकर, देश के सब लडके – लडकियों को साक्षर बनाऊँगा। गाँवों को जोड़ने के लिए पक्की सडकें बनाऊँगा। गाँव की उन्नति के लिए आवश्यक योजनाएँ बनाकर, उनको अमल करूँगा। गाँवों की उन्नति में ही देश की उन्नति निर्भर है।
नदियों पर बाँध बनाकर, उनका पानी पूरी तरह उपयोग में लाऊँगा। समाज में जो भेद भाव हैं, उनको दूर करूँगा। आसपास के देशों से मित्रता भाव बढाऊँगा। विश्व के प्रमुख देशों की कतार में भारत को भी बिठाने की कोशिश करूँगा। मैं अपने तन, मन, धन से देश को प्रगति के पथ पर ले जाने की कोशिश करूँगा, लोगों ने मुझ पर जो ज़िम्मेदारी रखी है, उसको सुचारू रूप से निभाऊँगा। उपसंहार : प्रधानमंत्री बनना सामान्य विषय नहीं है, अगर मैं प्रधानमंत्री बना तो ये सभी कार्य करूँगा।
26. आदर्श विद्यार्थी
जो विद्या (प्राप्त करता है) का आर्जन करता है, चाहता है, वह विद्यार्थी है जो विद्यार्थी उत्तम गुणों का पालन करता है, उसे आदर्श विद्यार्थी कहते हैं। अध्ययनकाल विद्यार्थी के भावी जीवन के लिए महत्वपूर्ण होता है। विद्यार्थी इस जीवनकाल में उत्तम गुणों को अपनायेगा तो उसका भविष्य उज्ज्वल होगा।
सबसे पहले आदर्श विद्यार्थी को नम्र होना चाहिए। नम्रता ही विद्यार्थी का आभूषण है। अपने माता-पिता के प्रति और अपने अध्यापकों के प्रति उसका आचरण सदैव विनम्र होना चाहिए। कहा गया है ‘विद्या ददाति विनयम्’ अर्थात् विद्या विनय प्रदान करती है विद्यार्थी को आज्ञाकारी होना चाहिए। बड़ों की आज्ञा का पालन करना, विद्यार्थी का प्रथम कर्तव्य है। वास्तव में जो आज्ञा का पालन करता है। यही अनुशासन है। विद्यार्थी को अनुशासन प्रिय होना चाहिए। अनुशासन से विद्यार्थी में शिष्टता तथा शालीनता के गुण आते हैं।
आदर्श विद्यार्थी को समय का सदुपयोग करना चाहिए। समय की महत्ता जानकर विद्यार्थी को अपने जीवन में लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। विद्यार्थी के जीवन का प्रमुख लक्ष्य विद्याध्ययन है। इस कारण इसे अपना सारा … समय अध्ययन में लगाना चाहिए। वर्ग में पढ़ाये गये विषयों को ध्यानपूर्वक सुनकर उन्हें स्मरण तथा मनन करने का प्रयत्न करना चाहिए। विद्यार्थी को अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्यागकर सदैव परिश्रम करना चाहिए। उसे जिज्ञासु होना चाहिए। नये विषयों की जानकारी के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।
आज विद्यार्थियों की स्थिति ठीक नहीं है। वे अपने कर्तव्य को भूलते जा रहे हैं और आये दिन बुरे गुणों का शिकार बनते जा रहे हैं। अनुशासन तो उनके जीवन में नहीं के बराबर है। नम्रता उनसे कोसों दूर है। वे अपने अध्यापक की हँसी उड़ाते हैं और परीक्षा के समय उन्हें पीटने को प्रस्तुत होते हैं। गुरु के प्रति आदर जताना वे अपना अपमान समझने लगे हैं। अपना बहुमूल्य समय वे सिनेमा देखने में सैर-सपाटे में मजाक में और व्यर्थ की बातों में बरबाद करते हैं। हर बात के लिए आज के विद्यार्थी आन्दोलन मचाने तथा तोड़फोड़ की बात करते हैं। विद्या सीखने की ओर उनका ध्यान कम रहता है। अपने शारीरिक सुखों के लिए अनैतिक कार्यों को करने के लिए वे पीछे भी नहीं हटते।
विद्यार्थी अपने भावी जीवन को उज्ज्वल बनाना चाहें तो उनमें नम्रता अनुशासन की भावना, समय के सदुपयोग का ज्ञान और अध्ययन के प्रति रुचि आदि का होना आवश्यक है, तभी वह आदर्श विद्यार्थी कहलाता है। आदर्श विद्यार्थी ही देश का सच्चा नागरिक सिद्ध होगा। उन्हीं के कंधों पर देश का भविष्य निर्भर है।
27. पर्यावरण और प्रदूषण …
प्रस्तावना :
पर्यावरण का अर्थ है वातावरण। पर्यावरण हर प्राणी का रक्षाकवच है। पर्यावरण के संतुलन से . मानव का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। विश्व भर की प्राणियों के जीवन पर्यावरण की स्थिति पर निर्भर रहते हैं। आजकल ऐसा महत्वपूर्ण पर्यावरण बिगडता जा रहा है। पर्यावरण में भूमि, वायु, जल, ध्वनि नामक चार प्रकार । के प्रदूषण फैल रहे हैं। इन प्रदूषणों के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगडता जा रहा है।
विषय विश्लेषण :
भूमि पर रहनेवाली हर प्राणी को जीने प्राणवायु (आक्सिजन) की आवश्यकता होती है। यह प्राणवायु हमें पेड – पौधों के हरे – भरे पत्तों से ही मिलता है। इन दिनों पेड – पौधों को बेफ़िक्र काट रहे हैं। वास्तव में पेड – पौधे ही पर्यावरण को संतुलन रखने में काम आते हैं। ऐसे पेड – पौधों को काटने से पर्यावरण का संतुलन तेज़ी से बिगडता जा रहा है । हमारे चारों ओर के कल – कारखानों से धुआँ निकलता है। इससे वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। कूडे – कचरे को नदी – नालों में बहा देने से जल प्रदूषण हो रहा है। वायु – जल प्रदूषणों के कारण कई बीमारियाँ फैल रही हैं।
नष्ट :
पर्यावरण के असंतुलन से मौसम समय पर नहीं आता। इससे वर्षा भी ठीक समय पर नहीं होती। वर्षा के न होने के कारण अकाल पडता है। कहीं अतिवृष्टि और कहीं अनावृष्टि की हालत भी आती है।
ऐसे प्रदूषण को यथा शक्ति दूर करना हम सबका कर्तव्य है। इसके लिए हम सब यह वचन लें और प्रयत्न करें – गंदगी न फैलाएँ, कूडा – कचरा नदी नालों में न बहायें, उनको सदा साफ़ रखें , पेड़ों को न काटें। साथ ही नये पेड – पौधे लगाकर पृथ्वी की हरियाली बढायें। वाहनों का धुआँ कम करें। ऐसा करने से ही पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं।
28. व्यायाम या किस रत) का महत्व
प्रस्तावना :
महाकवि कालिदास का कथन है – “शरीर माद्य खलु धर्म साधतम्”। इसका अर्थ है – धर्म साधन शरीर के द्वारा ही होता है। मानव अनेक सत्कार्य करता रहता है। अतः धार्मिक कार्यक्रमों के लिए सामाजिक सेवा के लिए तथा आत्मोद्धार के लिए शरीर की आवश्यकता बहुत है। अतः हर एक को स्वस्थ रहने व्यायाम की बडी आवश्यकता है।
उद्देश्य :
शरीर के दृढ और स्वस्थ होने पर ही कोई काम कर सकते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के कारण मानसिक उल्लास के साथ आत्मीय आनंद भी प्राप्त होता है। अतः हर एक को स्वस्थ रहने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए व्यायाम की बडी ज़रूरत है। व्यायाम के अनेक भेद हैं। विभिन्न प्रकार के योगासन, बैठक, दौडना, घूमना, प्राणायाम, कुश्ती, तैरना आदि सभी व्यायाम के अंतर्गत ही आते हैं। विद्यार्थी जीवन में ही व्यायाम करना बहुत आवश्यक है।
लाभ :
व्यायाम से शरीर सदा सक्रिय बना रहता है। रक्त संचार खूब होता है। रक्त के मलिन पदार्थ बाहर चले जाते हैं। पाचन शक्ति बढ़ती है। सारे इंद्रिय अपने – अपने काम ठीक करते रहते हैं। व्यायामशील आदमी आत्मविश्वासी और निडर होकर स्वावलंबी होता है।
नष्ट : व्यायाम तो अनिवार्य रूप से करना है। लेकिन व्यायाम करते समय अपनी आयु का ध्यान रखना चाहिए। व्यक्ति और व्यक्ति में व्यायाम का स्तर बदलता रहता है। इसका ध्यान नहीं है तो लाभ की अपेक्षा नष्ट ही अधिक होगा। उपसंहार : सब लोगों को व्यायाम प्रिय होना चाहिए। व्यायाम से व्यक्ति स्वस्थ बनकर अपना आयु प्रमाण बढा सकता है। अतः व्यायामशील व्यक्ति का जीवन सदा अच्छा और सुखमय होता है।
29. स्वच्छ भारत आभयान
भूमिका :
स्वच्छ भारत अभियान को स्वच्छ भारत मिशन और स्वच्छता अभियान भी कहा जाता है। यह एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है। यह भारत सरकार द्वारा 2 अक्तूबर, 2014 को महात्मा गाँधी जी की 145 वें जन्म दिवस के अवसर पर शुरू किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत में सफाई के उद्देश्य को पूरा करने के लिए अमल में लाया गया है। यह एक राजनीति मुक्त और देश भक्ति से प्रेरित अभियान है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी के सपने को साकार करनेवाला यह अभियान है।
उद्देश्य :
इस अभियान का उद्देश्य भारत के सभी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को साफ़ -सुथरा, स्वच्छ रखना है। खुले में शौच समाप्त करना, अस्वास्थ्यकर शौचालयों को फ्लश शौचालयों में परिवर्तित करना, ठोस और तरल कचरे का पुनः उपयोग, लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करना, अच्छी आदतों के लिए प्रेरित करना, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई व्यवस्था को अनुकूल बनाना, भारत में निवेश के लिए रुचि रखनेवाले सभी निजी क्षेत्रों के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करना आदि हैं।
प्रभाव :
स्वच्छ भारत बहुत प्रभावशाली और फलप्रद अभियान है। प्रधानमंत्री मोदी जी की प्रेरणा से इस के आरंभ पर लगभग 30 लाख स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों और सरकारी कर्मचारियों ने भाग लिया। प्रधानमंत्री जी ने नौ हस्तियों के नामों की घोषणा की । उनसे अपने क्षेत्र में सफाई अभियान को बढाने और आम जनता को उससे जुडने के लिए प्रेरित करने को कहा। हम भारतीय इसे एक चुनौती के रूप में लें और इसे सफल बनाने अपना पूरा प्रयास जारी रखें। स्वच्छ भारत प्राप्त होने तक इस मिशन की कार्यवाही निरंतर चलती रहनी चाहिए। भौतिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक कल्याण के लिए भारतीय लोगों में इसका एहसास होना अत्यंत आवश्यक है।
उपसंहार :
स्वच्छ भारत यह शक्तिशाली अभियान है। इसे बापू जी की 150 वीं पुण्यतिथि (2 अक्तूबर 2019) तक पूरा करने का लक्ष्य है। अपने अथक प्रयत्नों से “स्वच्छता भगवान की ओर अगला कदम है’ कहावत को साकार करके दिखायेंगे। तभी विश्व में भारत का अपना महत्वपूर्ण स्थान अक्षुण्ण रह सकेगा।
30. राष्ट्रभाषा हिन्दी
प्रस्तावना :
भारत एक विशाल देश है। इसमें अनेक राज्य हैं। प्रत्येक राज्य की अपनी प्रादेशिक भाषा होती है। राज्य के अंदर प्रादेशिक भाषा में काम चलता है। परंतु राज्यों के बीच व्यवहार के लिए एक संपर्क भाषा की आवश्यकता है। सारे देश के काम जिस भाषा में चलाये जाते हैं, उसे राष्ट्रभाषा कहते हैं। राष्ट्रभाषा के ये गुण होते हैं।
- वह देश के अधिकांश लोगों से बोली और समझी जाती है।
- उसमें प्राचीन साहित्य होता है।
- उसमें देश की सभ्यता और संस्कृति झलकती है।
हमारे देश में अनेक प्रादेशिक भाषाएँ हैं। जैसे – हिन्दी, बंगाली, उडिया, मराठी, तेलुगु, तमिल, कन्नड आदि। इनमें अकेली हिन्दी राष्ट्रभाषा बनने योग्य है। उसे देश के अधिकांश लोग बोलते और समझते हैं। उसमें प्राचीन साहित्य है। तुलसी, सूरदास, जयशंकर प्रसाद जैसे श्रेष्ठ कवियों की रचनाएँ मिलती हैं। उसमें हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति झलकती है। यह संस्कृत गर्भित भाषा है। इसी कारण हमारे संविधान में हिन्दी . राष्ट्रभाषा बनायी गयी। सरकारी काम – काज हिन्दी में हो रहे हैं। हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि है। इस लिपि की यह सुलभ विशेषता है कि – इसमें जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाता है।
उपसंहार :
भारतीय अखंडता और एकता के लिए हिन्दी का प्रचार और प्रसार अत्यंत अनिवार्य है। हर एक भारतीय को हिन्दी सीखने की अत्यंत आवश्यकता है। इसके द्वारा ही सभी प्रान्तों में एकता बढ़ सकती है। और आपस में मित्रता भी बढ़ सकती है।
31. शिक्षक दिवस (अध्यापक दिवस)
“गुल गोविंद दोऊँ खडे, काके लागौं पाँय।
बलिहारी गुल आपने, गोविंद दियो बताय”।
प्रस्तावना :
कबीर के इस दोहे से गुरु की महानता का परिचय हमें मिलता है। गुरु का दूसरा नाम ही शिक्षक और अध्यापक है। गुरु तो अज्ञान को मिटाकर ज्ञान प्रदान करनेवाले हैं। आज विद्यार्थी जगत में शिक्षक दिवस का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
उद्देश्य (महत्व) :
हमारी परंपरा के अनुसार माता – पिता के बाद गुरु का नाम आदर के साथ लिया जाता है। “मातृ देवोभव, पितृ देवोभव, आचार्य देवोभव” इसका अर्थ है गरु का स्थान ईश्वर से भी बड़ा होता है। गुरु ही हमारे भविष्य के निर्माता और हमें ज्ञानी बनाकर अच्छा जीवन जीने के योग्य बनाते हैं। अनुशासनयुक्त, उत्तम नागरिक बनने की सहायता करते हैं। ऐसे महान गुरु (शिक्षक) को ध्यान में रखते शिक्षक दिवस भारत में 5 सितंबर को मना रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में यह महत्वपूर्ण दिवस है। ऐसे महत्वपूर्ण दिवस हमारे भारत के राष्ट्रपति डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन के जन्म दिन के शुभ अवसर पर मना रहे हैं।
डॉ. राधाकृष्णन बचपन से बहुत परिश्रम करके उन्नत शिखर पहुँच गये हैं। गरीब ब्राह्मण परिवार में पैदा होकर अपनी बौद्धिक शक्ति स्मरण शक्ति और विद्वत्ता से वे इतने महान बन सके। वे सफल अध्यापक थे। , अध्यापक पद के वे एक आभूषण हैं। ऐसे महान व्यक्ति की जन्म तिथि को शिक्षक दिवस के रूप में मनाकर हम सब उनको याद कर लेते हैं। शिक्षा प्रणाली में राधाकृष्णन ने नये-नये सिद्धांत प्रस्तुत किये हैं। वे ही आजकल शिक्षा प्रणाली के नियम बन गये हैं।
उस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। विद्यार्थी अपने शिक्षकों को आदर के साथ सम्मानित करते हैं। गुरुजनों के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाते हैं। इसी दिन राष्ट्र सरकार भी उत्तम शिक्षकों को सम्मानित करती है।
32. यदि मैं मुख्यमंत्री होता ….
प्रस्तावना :
मुख्यमंत्री का पद एक साधारण पद नहीं है। यह राष्ट्र का शासन चलाने का प्रधान और मुख्य पद है।
उद्देश्य :
यदि मैं मुख्यमंत्री होता तो उस पद के द्वारा राष्ट्र और समाज का काया पलट देना चाहूँगा। मेरे सामने कई सपने हैं। उनके लिए एक प्रणाली तैयारी करके, उसके अनुसार काम करते हुए, समाज में उन्नति लाऊँगा।
विषय :
सबके दिलों में “हम सब एक हैं” – इस भावना को जगाने की कोशिश करूँगा। राष्ट्र को आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से आगे ले जाने की कोशिश करूँगा। किसानों को साक्षर बनाऊँगा। उन्हें सस्ते दामों में बीज, उपकरण आदि पहुँचाऊँगा। सहकारी समितियाँ बनाकर, उनसे कम सूद में ऋण प्राप्त करने की व्यवस्था करूँगा। अनेक मिल, कारखानों का निर्माण करके, जो बेरोज़गारी हैं, उसे दूर करने का प्रयत्न करूँगा।
स्कूलों, कॉलेजों और विश्व विद्यालयों की संख्या बढ़ाकर, राष्ट्र के सब लडके – लडकियों को साक्षर बनाऊँगा।
गाँवों को जोड़ने के लिए पक्की सडकें बनाऊँगा। गाँव की उन्नति के लिए आवश्यक योजनाएँ बनाकर, उनको अमल करूँगा। गाँवों की उन्नति में ही राष्ट्र की और देश की उन्नति निर्भर है।
नदियों पर बाँध बनाकर, उनका पानी पूरी तरह उपयोग में लाऊँगा। समाज में जो भेद भाव हैं, उनको दूर करूँगा। आसपास के देशों से मित्रता भाव बढाऊँगा। विश्व के प्रमुख राष्ट्र की कतार में भारत को भी बिठाने की कोशिश करूँगा। मैं अपने तन, मन, धन से देश को प्रगति के पथ पर ले जाने की कोशिश करूँगा, लोगों ने मुझ पर जो ज़िम्मेदारी रखी है, उसको सुचारू रूप से निभाऊँगा।
उपसंहार :
मुख्यमंत्री बनना सामान्य विषय नहीं है, अगर मैं मुख्यमंत्री बना तो ये सभी कार्य करूँगा।
33. दूरदर्शन
प्रस्तावना :
मानव को मनोरंजन की भी ज़रूरत होती है। मानव शारीरिक काम या मानसिक काम करके थक जाने के बाद कुछ आराम पाना चाहता है। आराम पाने वाले साधनों में खेलना, गाना, कहानी सुनना, सिनेमा या नाटक देखना, मित्रों से मिलकर खुशी मनाना कुछ प्रमुख साधन हैं। आजकल मानव को मनोरंजन देनेवाले साधनों में दूरदर्शन का प्रमुख स्थान है।
विषय विश्लेषण :
दूरदर्शन ग्रीक भाषा का शब्द है। दूरदर्शन को टी.वी. भी कहते हैं। टी.वी. यानी टेलीविज़न है। टेली का अर्थ है दूर तथा विज़न का अर्थ होता है प्रतिबिंब। दूरदर्शन का अर्थ होता है कि दूर के दृश्यों को हम जहाँ चाहे वहाँ एक वैज्ञानिक साधन के द्वारा देख सकना। दूरदर्शन की भी अपनी कहानी है। पहले-पहले इसको बनाने के लिये जॉन एल. बेयर्ड ने सोचा है। उसके बाद जर्मन के वैज्ञानिक पाल निपकौ ने बेयर्ड के प्रयोगों को आगे बढाया। क्यांबेल, स्विंटन आदि कई वैज्ञानिकों के लगातार परिश्रम से दूरदर्शन को 1927 में एक अच्छा रूप मिला।
लाभ :
इस दूरदर्शन से कई लाभ हैं। मानसिक उत्साह बढानेवाले साधनों में आजकल इसका प्रमुख स्थान है। आजकल हमारे देश में सौ प्रतिशत जनता दूरदर्शन की प्रसारण सीमा में है। आजकल इसके द्वारा हर एक विषय का प्रसार हो रहा है। विद्यार्थियों के लिए उपयोगी शिक्षा कार्यक्रम भी प्रसारित किये जा रहे हैं। इसके द्वारा हम समाचार, सिनेमा, नाटक आदि मनोरंजन कार्यक्रम भी सुन और देख सकते हैं।
नष्ट :
इसे लगातार देखने से आँखों की ज्योति भी मंद पडती है। दैनिक कामकाज छोडके इसमें लीन न होना चाहिए। छात्रों को पढाई छोडकर ज्यादा समय इसके सामने बिताना नहीं चाहिये। दूरदर्शन के प्रसारणों का सदुपयोग करके नियमित रूप से देखने से मानव-जीवन सुखमय होता है।
34. मानव जीवन में जल का महत्वपूर्ण स्थान है
जल हमारे लिए अत्यंत आवश्यक घटक है। यह प्रकृति का अनमोल उपहार है। जल के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। ऐसा माना जाता है कि जल ही जीवन है। यह अमृत समान है।
मनुष्य के साथ – साथ पशु – पक्षी, पेड – पौधे सभी के लिए अत्यंत आवश्यक है। सब का जीवन जल पर निर्भर है। दैनिक जीवन के लिए बहुत आवश्यक हैं। पानी, पीना, नहाना, भोजन करना, कपडे धोना, फसलें पैदा करना आदि के लिए जल बहुत महत्वपूर्ण है। जल के बिना हमारे जीवन की कल्पना करना कठिन है।
जल समुद्र, नदी, तालाब, पोखर, कुआँ, नहर इत्यादि में पाया जाता है। आजकल हर जगह पानी की बर्बादी हो रही है। जल प्रदूषित हो रहा है। जल की कमी के कारण हमें फसलों की उपज कम होती है। अनाज के दाम बढ जाते हैं। पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। पीने का पानी महंगा बन जायेगा। इसलिए हम सब को –
- जल को दूषित नहीं करना चाहिए।
- ज़मीन में जल का स्तर बनाये रखना चाहिए।
- पानी को बचाये रखना है।
- जल संरक्षण करना चाहिए।
- बरसात के पानी को इकट्टा करना चाहिए।
- पानी के रख – रखाव के लिए तालाब आदि बनाना चाहिए।
- पानी का इस्तेमाल कम से कम मात्रा में करना चाहिए।
- स्वच्छ पानी का महत्व जानना चाहिए।
- पानी को पानी की तरह नहीं बहाना चाहिए।
35. पुस्तकें ज्ञान के भंडार हैं
प्रस्तावना :
पढ़ने के लिए जिस स्थान पर पुस्तकों का संग्रह होता है, उसे पुस्तकालय कहते हैं। भारत में मुम्बई, कलकत्ता , चेन्नै, दिल्ली, हैदाराबाद आदि शहरों में अच्छे पुस्तकालय हैं। तंजाऊर का सरस्वती ग्रंथालय अत्यंत महत्व का है। मानव जीवन में पुस्तकालय का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
विषय विश्लेषण : पुस्तकालय चार प्रकार के हैं।
- व्यक्तिगत पुस्तकालय
- सार्वजनिक पुस्तकालय
- शिक्षा – संस्थाओं के पुस्तकालय
- चलते – फिरते पुस्तकालय
पुस्तकों को पढ़ने की रुचि तथा खरीदने की शक्ति रखनेवाले व्यक्तिगत पुस्तकालयों का संचालन करते हैं। इतिहास, पुराण, नाटक, कहानी, उपन्यास, जीवनचरित्र आदि सभी तरह के ग्रंथ सार्वजनिक पुस्तकालयों में मिलते हैं। इनमें सभी लोग अपनी पसंद की पुस्तकें पढ़ सकते हैं। नियत शुल्क देकर सदस्य होने पर पुस्तकें घर ले जा सकते हैं। शिक्षा संस्थाओं के पुस्तकालयों से केवल तत्संबंधी विद्यार्थी ही लाभ पा सकते हैं। देहातों तथा शहरों के विभिन्न प्रांतों के लोगों को पुस्तकें पहुँचाने में चलते – फिरते पुस्तकालय बहुत सहायक हैं। इनके नियमित रूप से पढ़ने से मनोरंजन के साथ – साथ ज्ञान – विज्ञान की भी वृद्धि होती है।
पुस्तकें पढ़ने से ये लाभ हैं :
इनके नियमित रूप से पढ़ने से मनोरंजन के साथ – साथ ज्ञान – विज्ञान की भी वृद्धि होती है।
- अशिक्षा दूर होती है।
- बुद्धि का विकास होता है।
- कुभावनाएँ दूर होती हैं।
विभिन्न देशों की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों का परिचय मिलता है।
उपसंहार :
पुस्तकालय हमारा सच्चा मित्र है। इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। इसलिए पुस्तकों को गंदा करना, पन्ने फाडना नहीं चाहिए। अच्छी पुस्तकें सच्चे मित्र के समान हमारे जीवन भर काम आती है। ये सच्चे गुरु की तरह ज्ञान और मोक्ष दायक भी हैं।
36. विद्यार्थी जीवन में नैतिक शिक्षा
आजकल समाज में जहाँ देखो वहाँ नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। देश के हर क्षेत्र में अर्थात् राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, अन्याय, अत्याचार, आदि दिखायी दे रहे हैं। इन सबका एक मात्र कारण है नैतिक मूल्यों का पतन एवं ह्रास।
प्राचीन ज़माने में पाठशाला शिक्षा में विद्यार्थियों के लिए नैतिक शिक्षा प्रदान की जाती थी, लेकिन आजकल विद्यार्थियों के लिए नैतिक शिक्षा का अभाव है। केवल यांत्रिक रूप से शिक्षा दी जा रही है। आजकल शिक्षा का उद्देश्य केवल अंक प्राप्त करना ही है।
नैतिक शिक्षा के कारण ही समाज में परोपकार की भावना, भाईचारे की भावना, आपसी सद्भावना, सहृदयता, उदारता, प्रेम, दया, ममता, समता, त्याग, इन्सानियत आदि भावनाएँ जागृत होंगे।
इसलिए विद्यार्थी जीवन में ही हर विद्यार्थी नैतिक शिक्षा को अपनाना चाहिए। सरकार को भी पाठशालाओं में नैतिक शिक्षा की प्रधानता देनी चाहिए। नैतिक शिक्षा से संबंधित पाठ्य प्रणाली बनानी चाहिए। हर सप्ताह में एक कालांश देकर नीति कहानियाँ और अनेक नैतिक विषयों को बनाना चाहिए। जिनसे विद्यार्थी उन्हें ग्रहण करके निज जीवन में भी नैतिक मूल्यों का पालन करेंगे। माँ – बाप की सेवा करेंगे। अतिथियों और गुरुजनों का आदर करेंगे।
37. आदर्श नेता
प्रस्तावना :
गाँधीजी भारत के सभी लोगों के लिए भी आदर्श नेता थे। उन्होंने लोगों को सादगी जीवन बिताने का उपदेश दिया। स्वयं आचरण में रखकर, हर कार्य उन्होंने दूसरों को मार्गदर्शन किया। नेहरू, पटेल आदि महान नेता उनके आदर्श पर ही चले हैं। महात्मा गाँधीजी मेरे अत्यंत प्रिय नेता हैं।
जीवन परिचय :
गाँधीजी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर में हुआ। बैरिस्टर पढकर उन्होंने वकालत शुरू की। दक्षिण अफ्रीका में उनको जिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा। उनके कारण वे आज़ादी की लड़ाई में कूद पडे। असहयोग आन्दोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोडो आदि आन्दोलनों के ज़रिए लोगों में जागरूकता लायी। अंग्रेजों के विरुद्ध लडने के लिए लोगों को तैयार किया। वे अहिंसावादी थे। समय का पालन करनेवाले महान पुरुषों में प्रमुख थे। उनके महान सत्याग्रहों से प्रभावित होकर अंग्रेज़ भारत छोडकर चले गये। अगस्त 15,1947 को भारत आज़ाद हुआ। महात्मा गाँधीजी के सतत प्रयत्न से यह संपन्न हुआ।
उपसंहार :
गाँधीजी की मृत्यु नाथुरां गाड्से के द्वारा 30 – 1 – 1948 को बिरला भवन में हुई। गाँधीजी का जीवन, चरित्र आदि का प्रभाव मेरे ऊपर पड़ा है। वे हमारे लिए आदर्श नेता ही नहीं, महान प्रिय नेता भी हैं।
38. मोबाइल फ़ोन
आजकल के यान्त्रिक युग में मानव को सुख – सुविधा प्रदान करनेवाले अनेक साधनों में ‘मोबाइल फ़ोन’ प्रमुख है। इसे सेलफ़ोन और हाथ फ़ोन भी बुलाया जाता है। यह बिना तारों के लंबी दूरी का इलेक्ट्रानिक उपकरण है। इसके ज़रिये विश्व के जिस देश में या प्रांत में स्थित लोगों से जब चाहे तब बोलने की सुविधा है। इसे विशेष स्टेशनों के नेटवर्क के आधार पर मोबाइलविशेष आवाज़ या डेटा संचार के लिए उपयोग करते हैं। वर्तमान मोबाइल फ़ोन में एस.एम.एस. इंटरनेट, रोमिंग, ब्लूटूथ, कैमरा, तस्वीरें, वीडियो भेजने और प्राप्त करने की अनेक सुविधाएँ हैं। हमारे भारत देश में सन् 1985 में दिल्ली में मोबाइल सेवाएँ आरंभ हुई हैं। मोबाइल फ़ोन के आविष्कार से देश और विदेशों की दूरी कम हुयी। यह सभी वर्गों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। इससे हमें समय, धन, तथा श्रम की बचत होती है। आपात् स्थिति में यह बहुत काम आनेवाला होता है।
इससे मिलनेवाली सुविधाएँ
- हम इसे अपने साथ जहाँ चाहे वहाँ ले जा सकते हैं। सब आवश्यक खबरें प्राप्त कर सकते हैं।
- दुर्घटनाओं के होने पर पुलिस व आंबुलेन्स को तुरंत बुला सकते हैं।
- इसके ज़रिए मनोविनोद के लिए संगीत, गीत सुन सकते हैं और अनेक खेल खेल सकते हैं।
- इसमें संगणक और फ़ोन बुक भी होते हैं।
- सारे विश्व के लोगों से इंटरनेट द्वारा संबन्ध रख सकते हैं और बातचीत कर सकते हैं।
- वीडियो कान्फरेन्स कर सकते हैं।
- दोस्त और परिवारवालों से संपर्क कर सकते हैं।
- बहुत काम कर सकते हैं। आये ई मेइल्स देख सकते हैं।
- अपने पॉकेट में रखकर कहीं भी जा सकते हैं।
- फ़ोन में स्थित कैमरा से चित्र निकाल सकते हैं। और उन्हें तुरंत भेज सकते हैं।
असुविधाएँ :
अनेक सुविधाओं के होने के बावजूद मोबाइल फ़ोन संबंधी अनेक असुविधाएँ भी हैं, वे हैं
- मोबाइल फ़ोन कीमती होते हैं। अधिक समय सुनते रहने से सुनने की शक्ति घटती जाती है।
- गाडी या मोटर कार आदि चलाते समय इसके उपयोग करने से अनेक दुर्घटनाएं हो सकती हैं।
- बूढे और बड़े लोगों के लिए इस्तेमाल करने में धिक्कत हो सकती है।
- मित्रों व परिवार के सदस्यों के साथ बातें करते ही रहने से अनेक आवश्यक काम बिगड सकते हैं।
- कुर्ते और पतलून के पॉकेटों में रखने से रोगों के शिकार बनने की संभावना है।
इस तरह हम देखते हैं कि मोबाइल फ़ोन से अनेक सुविधाओं के मिलने पर भी कुछ असुविधाएँ भी हैं। अतः उसका इस्तेमाल सही रूप से करके अपने आवश्यक मुख्य कार्यों को संपन्न करना हमारा मुख्य कर्तव्य है।
39. इंटरनेट से लाभ अथवा हानि
भूमिका :
आज का युग विज्ञान का युग है। वैज्ञानिक उपलब्धियों ने मानव जीवन को एक नयी दिशा प्रदान की है। इंटरनेट संचार का सबसे सरल, तेज़ और सस्ता माध्यम है। कम्प्यूटर के आविष्कार के कारण ही इंटरनेट अस्तित्व में आया। इसका प्रयोग साफ्टवेर माध्यम से किया जाता है। इसका जन्म दाता अमेरिका माना जाता है। इंटरनेट टेलीफोन की लाइनों, उपग्रहों और प्रकाशकीय केबुल द्वारा कम्प्यूटर से जुडा होता है। इसके द्वारा विश्व का समस्त जानकारी एक जगह से दूसरी पढी जा सकती है। इसकी विशेषताओं के कारण ही इसका प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ रहा है।
विशेषताः
इंटरनेट तो ज्ञान का अतुलनीय भंडार है। इंटरनेट में संदेश ई – मेल के माध्यम से भेजा जाता है। इसमें विभिन्न लिखित पत्र, चित्र आदि होते हैं। सूचनाएँ एकत्र करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। आज हम “इंटरनेट के माध्यम से हज़ारों वेब साईट देख सकते हैं।
लाभ :
इंटरनेट पर बहुत संभावनाएँ उपलब्ध हैं। खासकर छात्रों के लिए यह बहुत आवश्यक है। किसी भी क्षेत्र से जुडी आवश्यक जानकारी यहाँ से प्राप्त होती है। विभिन्न देशों में फैले अपने कार्यालयों का संज्ञालन एक ही जगह पर इंटरनेट के माध्यम से किया जा सकता है। इंटरनेट असीम सूचनाओं का भंडार, सस्ता, शीघ्रता से पहुँचनेवाला है और मनोरंजन से भरपूर है। नौकरियों की भी बहुत अच्छी संभावनाएँ इसमें मौजूद हैं।
हानि :
कुछ असमाजिक तत्वों द्वारा इंटरनेट का दुरूपयोग किया जा रहा है। कुछ लोग वायरस के द्वारा महत्वपूर्ण वेबसाइटों को नुकसान पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। कम्प्यूटर को हैक करके महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त करते हैं। कई हेकरों द्वारा बैंकों में सेंघ लगाई जाती है। यह देश की अर्थ व्यवस्था और उसकी सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। इस तरह के अपराधिक मामलों को निबटाने विभिन्न देश कार्यरत हैं।
उपसंहार :
कुछ साइबर क्रमों के होने पर भी इंटरनेट का महत्व घटता नहीं जा सकता है। आज के युग की । सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है यह भारत में इसका प्रचार – प्रसार तीव्र गति से बढ रहा है।
40. बटा बचाआ – बटा पढाआ
बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ एक नई योजना है। जो देश की बेटियों के लिए चलायी गयी है। बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ योजना का उद्घोष स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत हरियाणा में किया।
भारत देश में जन संख्या तो बड़ी तादात में फैल रही है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस बढ़ती हुई जनसंख्या में लडकियों का अनुपात कम होता जा रहा है। वर्ष 2001 में की गयी गणना के अनुसार प्रति 1000 लडकों में 927 लडकियाँ थी जो आंकडागिरकर 2011 में 918 हो गया।
आधुनिकीकरण के साथ – साथ जहाँ विचारों में भी आधुनिकता आनी चाहिए वहाँ इस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं। आगर इसी तरह वर्ष दर वर्ष लडकियों की संख्या होती रही तो एक दिन देश अपने आप ही नष्ट होने की स्थिति में होगा।
कन्या भ्रूण हत्या को रोकना, बेटियों की सुरक्षा के लिए इस योजना को शुरू किया गया है। आये दिन छेड़-छाड बलात्कार जैसे घिनौने अपराध बढ़ रहे हैं। इनको भी नियंत्रित करने हेतु इस योजना को शुरु किया गया है।
41. राष्ट्रीय एकता
प्रस्तावना :
किसी भी देश की उन्नति के लिए देश में बसे रहे नागरिकों में राष्ट्रीय एकता की भावना कूट कूटकर भरी होनी चाहिए। राष्ट्रीय एकता का मतलब यह है कि भारत के अलग – अलग जगहों में रहनेवाले और अलग – अलग धर्मों का अनुसरण करनेवाले लोग आपस में मिलजुलकर रहना।
विषय विस्तार :
किसी देश में या वहाँ के लोगों में राष्ट्रीय एकता की कमी होगी तो लोगों के बीच सहयोग की भावना नहीं रहेगी। सभी लोग एक-दूसरे से लडेंगे, भ्रष्टाचार करेंगे और एक-दूसरे का नुकसान करने में लगे रहेंगे। इससे लोगों को ही नहीं। देश को भी नुकसान होगा। जब लोगों के बीच राष्ट्रीय एकता की भावना होगी तो वह एक-दूसरे का सम्मान करेंगे और लोग मिलकर काम करेंगे और एक-दूसरे की मदद भी करेंगे।
राष्ट्रीय एकता से लाभ :
राष्ट्रीय एकता की वजह से ही गरीब लोगों को अच्छी शिक्षा और विभिन्न तरह का मदद मिल सकता है। इसके कारण पूरे समाज का विकास हो सकता है। राष्ट्रीय एकता के कारण देश के हर क्षेत्र में विकास संभव है। अगर राष्ट्रीय एकता मज़बूत हो तो देश के सारे संसाधन राष्ट्रीय विकास की ओर लगेगा। लोगों के बीच सम्मान की भावना बढ़ेगी और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सहयोग की भावना बढ़ेगी। हमारे देश में भारत की लोह पुरुष कहे जानेवाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा देश को हमेशा एकजुट करने के लिए अनेक प्रयास किये गये। इन्हीं के कार्यों को याद करते हुये उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया।
उपसंहार :
अनेकता में एकता यही भारत की विशेषता है। “अमरावती हो या अमृतसर सारा देश अपना घर’ मानकर “भिन्न भाषा, भिन्न वेश-भारत हमारा एक देश” कहते हुये देश की एकता के लिए हम सब को मिलकर काम करना जरूरी है।
42. राष्ट्रभाषा हिंदी का महत्व
राष्ट्रभाषा हिंदी का महत्व :
यह हम सभी जानते हैं कि अनुच्छेद 343 (1) के तहत हिन्दी को 14 सितंबर, 1949 को राजभाषा के रूप में गौरवान्वित किया है। तब से हम हर वर्ष से 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाते हैं।
भारत के अलग – अलग प्रांतों में अलग – अलग भाषाएँ बोली जाती हैं। हमें भारत के सभी प्रांतों से जुडने के लिए एक भाषा की आवश्यकता होती है। सारे भारतवासी जानते हैं कि वैसी भाषा हिन्दी है जो सारे भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँधती है। आज केवल न भारत में बल्कि भारत के अलावा बंग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, भूटान, फिज़ी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिडाड एवं टुबेगो, दक्षिण अफ्रिका, बहरीन, कुवैत, ओमान, कत्तर, सौदी अरब गणराज्य, श्रीलंका, अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान मॉरिशस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में हिन्दी की माँग बढती ही जा रही है। विदेशों में भी हिन्दी की रचनाएँ लिखी जा रही है। जिसमें वहाँ के साहित्यकारों का भी विशेष योगदान है। विदेशों में भारतीयों से आपसी व्यवहार का भी विशेष योगदान है। विदेश भारतीयों से आपसी व्यवहार करने के लिए वहाँ के लोग भी हिन्दी सीख रहे हैं। इस तरह हिन्दी की माँग विश्व भर में बढती जा रही है। इसलिए विदेशी संस्थाएँ भी हिन्दी के प्रचार- प्रसार में जुट गई है।
पाँच नारे :
- हिंदी है देश की भाषा, हिंदी सबसे उत्तम भाषा।
- हिंदी का सम्मान , राष्ट्र का सम्मान।
- हिंदी जोड़ने वाली भाषा है, तोड़ने वाली नहीं।
- हिंदी हमारी शान है, देश का मान है।
- हिंदी हैं हम, हिंदुस्तान हैं हमारा।
43. खेलों का महत्व
भूमिका :
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। स्वस्थ शरीर के लिए खेलकूद की ज़रूरत है। हमारे गाँवों में बच्चे कबड्डी खेलते हैं। इस खेल के लिए पैसों का खर्चा नहीं होता। इसके अतिरिक्त इसे खेलने से अच्छा व्यायाम होता है। आजकल क्रिकेट लोकप्रिय खेल है। इसी प्रकार हॉकी, फुटबॉल, वालीबॉल आदि खेले जाते हैं। ये खर्चीले हैं। हाईजम्प, लान्ग जम्प, दौड़ना आदि से भी अच्छा व्यायाम होता है।
खेलकूद से अनेक लाभ हैं :
- सहयोग की भावना बढ़ती है।
- आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
- अनुशासन की वृद्धि होती है।
- कर्तव्य-भावना बढ़ती है।
- स्वास्थ्य लाभ होता है।
- मनोरंजन होता है।
इसलिए विद्यार्थियों को खेलकूद में भाग लेना चाहिए। खासकर पाठशाला में खेलों का अधिक महत्व होता है।
उपसंहार :
खेल सारी दुनियाँ में व्याप्त हो गये हैं। इनसे तन्दुरुस्ती के साथ सुख जीवन संभव है। बच्चों को इसका महत्व जानकर तरह-तरह के खेल खेलने चाहिए। आज कल अच्छे खिलाडियों को इज्ज़त के साथ धन भी प्राप्त हो रहा है। इन सभी कारणों से हमारे जीवन में खेलकूद का अत्यंत महत्व होता है।